तलब ना थी शराब की, मगर मुँह से लगा बैठे, इश्क़ था

"तलब ना थी शराब की, मगर मुँह से लगा बैठे, इश्क़ था मकसद भुलाना, मगर खुद को भुला बैठे, रहे होंगे जो क़भी हमारे मुस्तगील(फरियादी ), नशे मे देख हमें , वो भी अपने दरवाजे लगा बैठे, जाम से जाम टकराये, ये जहाँ भुला बैठे, करके उनके चर्चे पर्चो मे, खुद का नाम गुमा बैठे, ता उम्र की तन्हाई, और अपनी मुस्कान गबा बैठे, करके सब्र अपनी दुहाई का, उनकी यादो से गले लगा बैठे, ताउम्र जिनकी हिफाजत करना जिम्मा था हमारा, आज हम अपने ही पैर डगा बैठे, सोनू sinha_"

 तलब ना थी शराब की, मगर मुँह से लगा बैठे, 
इश्क़ था मकसद भुलाना, मगर खुद को भुला बैठे, 

रहे होंगे जो क़भी हमारे मुस्तगील(फरियादी ), 
नशे मे देख हमें , वो भी अपने दरवाजे लगा बैठे, 

जाम से जाम टकराये,  ये जहाँ भुला बैठे, 
करके उनके चर्चे पर्चो मे, खुद का नाम गुमा बैठे, 

ता उम्र की तन्हाई, और अपनी मुस्कान गबा बैठे, 
करके सब्र अपनी दुहाई का, उनकी यादो से गले लगा बैठे, 

ताउम्र जिनकी हिफाजत करना जिम्मा था हमारा,
आज हम अपने ही पैर डगा बैठे, 

सोनू sinha_

तलब ना थी शराब की, मगर मुँह से लगा बैठे, इश्क़ था मकसद भुलाना, मगर खुद को भुला बैठे, रहे होंगे जो क़भी हमारे मुस्तगील(फरियादी ), नशे मे देख हमें , वो भी अपने दरवाजे लगा बैठे, जाम से जाम टकराये, ये जहाँ भुला बैठे, करके उनके चर्चे पर्चो मे, खुद का नाम गुमा बैठे, ता उम्र की तन्हाई, और अपनी मुस्कान गबा बैठे, करके सब्र अपनी दुहाई का, उनकी यादो से गले लगा बैठे, ताउम्र जिनकी हिफाजत करना जिम्मा था हमारा, आज हम अपने ही पैर डगा बैठे, सोनू sinha_

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