इश्क़ मुनासिब मोहलत मुक्कमल
रब के दरबार में झूठ नहीं टिकता
रोज रंजिश के ताबूत में बन्द कर के
मन का परींदा कैद नहीं मरता
चलती है सांसे तेज हर पल में
रोकने से दिल को इश्क़ नहीं रुकता
नूर अलग है तेज़ तुम्हारा
जैसे तेज़ हो महादेव का मनका
अमल अमर अस्तित्व आवश्यकता
जैसे तरल तैरता तेल पर हल्का
करो मन का तभी तहलका
वरना महाकाल का खेल ना संभलता
अंद पाखंड सब धरा यहां
जहा तांडव चलता शिव का
मृतक जाग उठा शंख मृदग्नी
शंभु शुलभ करे मिर्ग का।।।
©कव्यप्रिंस
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