मुझे अब एकांत ज्यादा पसंद है
सब भावो से शून्य मन अब शांत ज्यादा पसंद है
जो भरे थे कभी अनंत बातों से पूरे ही
उन अधरो को मोन से सिलकर,
उन्ही बातों के संगीत को ,अंतरात्मा में दोहराता हुआ
मन का वो वृतांत ज्यादा पसंद है
मुझे बस अब मेरा एकांत ज्यादा पसंद है ।
©seema patidar
एकांत