सामने मंज़िल थी और, होंसला बुलन्द था खुशनसीबी थी म | हिंदी कविता

"सामने मंज़िल थी और, होंसला बुलन्द था खुशनसीबी थी मेरी जो यार मेरे संग था मौसम ने लीं करवटें और आशियां उजड़ गया कल तक जो साथ था मेरे ठोकर लगा के बढ़ गया पर जाते जाते वो मुझे सबक ए जिन्दगी दे गया"

 सामने मंज़िल थी और, होंसला बुलन्द था 
खुशनसीबी थी मेरी 
जो यार मेरे संग था
मौसम ने लीं करवटें
और आशियां उजड़ गया
कल तक जो साथ था मेरे
ठोकर लगा के बढ़ गया
पर जाते जाते वो मुझे
सबक ए जिन्दगी दे गया

सामने मंज़िल थी और, होंसला बुलन्द था खुशनसीबी थी मेरी जो यार मेरे संग था मौसम ने लीं करवटें और आशियां उजड़ गया कल तक जो साथ था मेरे ठोकर लगा के बढ़ गया पर जाते जाते वो मुझे सबक ए जिन्दगी दे गया

# सबक ए जिन्दगी

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