भारतवर्ष के आध्यात्मिक मूल्यों, “वसुधैव कुटुम्बकम् | हिंदी कविता

"भारतवर्ष के आध्यात्मिक मूल्यों, “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे दिव्य भावों, ज्ञान-आलोक,विद्या तथा योग-आयुर्वेद के प्रति सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण और स्वीकार्यता बढ़ी है। सम्पूर्ण विश्व में अपना भारत सर्वसमर्थ और सशक्त देश बनकर उभरा है। सभी दिशाओं और क्षेत्रों में हमारे देश की प्रगति सभी को दृष्टिगोचर हो रही है। आओ ! एकजुट होकर अपने देश को अजेय, समरस, सुसम्पन्न, सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर भारत बनाएँ । ७८वें "स्वतंत्रता दिवस" की अनेक शुभकामनाए। ©मनोज कुमार झा "मनु""

 भारतवर्ष के आध्यात्मिक मूल्यों, “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे दिव्य भावों, ज्ञान-आलोक,विद्या तथा योग-आयुर्वेद के प्रति सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण और स्वीकार्यता बढ़ी है। 
सम्पूर्ण विश्व में अपना भारत सर्वसमर्थ और सशक्त देश बनकर उभरा है। 
सभी दिशाओं और क्षेत्रों में हमारे देश की प्रगति सभी को दृष्टिगोचर हो रही है। 
आओ ! एकजुट होकर अपने  देश को अजेय, समरस, सुसम्पन्न, सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर भारत बनाएँ । 

७८वें "स्वतंत्रता दिवस" की अनेक शुभकामनाए।

©मनोज कुमार झा "मनु"

भारतवर्ष के आध्यात्मिक मूल्यों, “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे दिव्य भावों, ज्ञान-आलोक,विद्या तथा योग-आयुर्वेद के प्रति सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण और स्वीकार्यता बढ़ी है। सम्पूर्ण विश्व में अपना भारत सर्वसमर्थ और सशक्त देश बनकर उभरा है। सभी दिशाओं और क्षेत्रों में हमारे देश की प्रगति सभी को दृष्टिगोचर हो रही है। आओ ! एकजुट होकर अपने देश को अजेय, समरस, सुसम्पन्न, सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर भारत बनाएँ । ७८वें "स्वतंत्रता दिवस" की अनेक शुभकामनाए। ©मनोज कुमार झा "मनु"

जय भारत

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