तू हार पे प्रहार कर! तू जीत को भी पार कर! तू दर्द

"तू हार पे प्रहार कर! तू जीत को भी पार कर! तू दर्द को धनुष बना, नज़र को अपनी धार कर, यही है धर्म युद्ध का, ये नियति का है फैसला, ये वख्त की पुकार है, तू फिर से एक बार कर! तू दुख में क्यूँ विलीन है, तू अब भी दृष्टि हीन है, हृदय तेरा अनाथ है, तू बस दया का पात्र है, जो गिर के भी रुका नही विजयी उसी के साथ है! तू हौंसलों को दम लगा, तू कर्म का मरहम लगा, जो ज्वाला सा भड़क उठे हृदय को ऐसा ग़म लगा! तू कर्म ऐसा कर्म कर, परिणाम से हो जो निडर, तू राहतों को चीर दे, तू हारने का तज दे भय, तू रुक गया तो रुक गया ये ज़िन्दगी का कारवां, थको नही उड़ान से पुकारता है आसमां!"

 तू हार पे प्रहार कर! तू जीत को भी पार कर! तू दर्द को धनुष बना, नज़र को अपनी धार कर, यही है धर्म युद्ध का, ये नियति का है फैसला, ये वख्त की पुकार है, तू फिर से एक बार कर! तू दुख में क्यूँ विलीन है, तू अब भी दृष्टि हीन है, हृदय तेरा अनाथ है, तू बस दया का पात्र है, जो गिर के भी रुका नही विजयी उसी के साथ है!  तू हौंसलों को दम लगा, तू कर्म का मरहम लगा, जो ज्वाला सा भड़क उठे हृदय को ऐसा ग़म लगा! तू कर्म  ऐसा कर्म कर, परिणाम से हो जो निडर, तू राहतों को चीर दे, तू हारने का तज दे भय, तू रुक गया तो रुक गया  ये ज़िन्दगी का कारवां, थको नही उड़ान से पुकारता है आसमां!

तू हार पे प्रहार कर! तू जीत को भी पार कर! तू दर्द को धनुष बना, नज़र को अपनी धार कर, यही है धर्म युद्ध का, ये नियति का है फैसला, ये वख्त की पुकार है, तू फिर से एक बार कर! तू दुख में क्यूँ विलीन है, तू अब भी दृष्टि हीन है, हृदय तेरा अनाथ है, तू बस दया का पात्र है, जो गिर के भी रुका नही विजयी उसी के साथ है! तू हौंसलों को दम लगा, तू कर्म का मरहम लगा, जो ज्वाला सा भड़क उठे हृदय को ऐसा ग़म लगा! तू कर्म ऐसा कर्म कर, परिणाम से हो जो निडर, तू राहतों को चीर दे, तू हारने का तज दे भय, तू रुक गया तो रुक गया ये ज़िन्दगी का कारवां, थको नही उड़ान से पुकारता है आसमां!

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