मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं! थोड़ी बहुत ख़ुद में | हिंदी शायरी

"मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं! थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूं! लड़ाई वजूद की वजूद तक आई, ख़ुदा का येभी इम्तिहान देखता हूं! उजड़ गया आपस के झगड़े में घर, गली- कूचे में नया मकान देखता हूं! तल्ख़ लहजे में टूट गई रिश्तों की डोर, दीवारें आंगन के दरमियान देखता हूं! लगी आग नफ़रत की ऐसी जहां में, हर शख़्स हुआ परेशान देखता हूं! ज़ख्म गहरा दिया था भर गया लेकिन, सरे-पेशानी पे मेरे निशान देखता हूं! किसी सूरत ज़मीर का सौदा नहीं किया, मेरे ईमान से रौशन मेरा जहान देखता हूं! ©मोहम्मद मुमताज़ हसन"

 मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं!
थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूं!

लड़ाई वजूद की वजूद तक आई,
ख़ुदा का येभी इम्तिहान देखता हूं!

उजड़ गया आपस के झगड़े में घर,
गली- कूचे में नया मकान देखता हूं!

तल्ख़ लहजे में टूट गई रिश्तों की  डोर,
दीवारें आंगन के दरमियान देखता हूं!

लगी आग नफ़रत की ऐसी जहां में, 
हर शख़्स हुआ परेशान  देखता हूं!

ज़ख्म गहरा दिया था भर गया लेकिन,
सरे-पेशानी पे मेरे निशान देखता हूं!

किसी सूरत ज़मीर का सौदा नहीं किया,
मेरे ईमान से रौशन मेरा जहान देखता हूं!

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं! थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूं! लड़ाई वजूद की वजूद तक आई, ख़ुदा का येभी इम्तिहान देखता हूं! उजड़ गया आपस के झगड़े में घर, गली- कूचे में नया मकान देखता हूं! तल्ख़ लहजे में टूट गई रिश्तों की डोर, दीवारें आंगन के दरमियान देखता हूं! लगी आग नफ़रत की ऐसी जहां में, हर शख़्स हुआ परेशान देखता हूं! ज़ख्म गहरा दिया था भर गया लेकिन, सरे-पेशानी पे मेरे निशान देखता हूं! किसी सूरत ज़मीर का सौदा नहीं किया, मेरे ईमान से रौशन मेरा जहान देखता हूं! ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#पुराना मकान #जान #जहान 

People who shared love close

More like this

Trending Topic