मोहम्मद मुमताज़ हसन

मोहम्मद मुमताज़ हसन Lives in Tekari, Bihar, India

कवि, लेखक बालसाहित्यकार

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26 जनवरी की शुभ सुबह आई ये वतन जाग उठा! जम्हूरियत का परचम लहराई ये वतन जाग उठा!! ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#जम्हूरियत #शायरी #RepublicDay #वतन  26 जनवरी की शुभ सुबह आई
ये वतन जाग उठा!

जम्हूरियत का परचम लहराई
ये वतन जाग उठा!!

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं! थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूं! लड़ाई वजूद की वजूद तक आई, ख़ुदा का येभी इम्तिहान देखता हूं! उजड़ गया आपस के झगड़े में घर, गली- कूचे में नया मकान देखता हूं! तल्ख़ लहजे में टूट गई रिश्तों की डोर, दीवारें आंगन के दरमियान देखता हूं! लगी आग नफ़रत की ऐसी जहां में, हर शख़्स हुआ परेशान देखता हूं! ज़ख्म गहरा दिया था भर गया लेकिन, सरे-पेशानी पे मेरे निशान देखता हूं! किसी सूरत ज़मीर का सौदा नहीं किया, मेरे ईमान से रौशन मेरा जहान देखता हूं! ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#पुराना #शायरी #जहान  #जान  मैं जब भी पुराना मकान देखता हूं!
थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूं!

लड़ाई वजूद की वजूद तक आई,
ख़ुदा का येभी इम्तिहान देखता हूं!

उजड़ गया आपस के झगड़े में घर,
गली- कूचे में नया मकान देखता हूं!

तल्ख़ लहजे में टूट गई रिश्तों की  डोर,
दीवारें आंगन के दरमियान देखता हूं!

लगी आग नफ़रत की ऐसी जहां में, 
हर शख़्स हुआ परेशान  देखता हूं!

ज़ख्म गहरा दिया था भर गया लेकिन,
सरे-पेशानी पे मेरे निशान देखता हूं!

किसी सूरत ज़मीर का सौदा नहीं किया,
मेरे ईमान से रौशन मेरा जहान देखता हूं!

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

चलो ये हुनर हम आजमा कर देखते हैं मुहब्बत का इक शहर बसा कर देखते हैं ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#मोहब्बत #शायरी #शहर  चलो ये हुनर हम आजमा कर देखते हैं
मुहब्बत का इक शहर बसा कर देखते हैं

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

मत बोल मत बोल मत बोल रोटी आलू प्याज़ भी है गोल आधा पुल आधी आधी पोल मत बोल मत बोल मत बोल सोना हुआ तेल रुक गई रेल खा गई अंग्रेजी बच्चों का खेल बज रहा घर घर पैसे का ढोल मत बोल मत बोल मत बोल आग मिट्टी पेड़ पानी और हवा गरीबों की लूट ली गई ये दवा झूट कैसे होता है सच देख ले बिकता हुआ अखबार खोल तेरे बाग़ का तो गुलाब टूटा यहाँ आँखों का ख़्वाब टूटा हो गई मुहब्बत भी बेमोल मत बोल मत बोल मत बोल रौशनी तमाम अंधेरी हो गई पत्थरों की सूरत है नई नई भाई भाई में फूट बढ़ रही है ऐ सियासत ज़हर कम घोल मत बोल....... दहशत दर्द और खड़ी दीवार के बेवफ़ा ही तो है वफ़ादार ख़ूब फूले फलेगा आगे बढ़ेगा लुटेरों के आगे पीछे और डोल मत बोल मत बोल मत बोल नदीम हसन चमन ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#कविता #गीत  मत बोल मत बोल मत बोल
रोटी आलू प्याज़ भी है गोल
आधा पुल आधी आधी पोल
मत बोल मत बोल मत बोल

सोना हुआ तेल रुक गई रेल
खा गई अंग्रेजी बच्चों का खेल
बज रहा घर घर पैसे का ढोल
मत बोल मत बोल मत बोल

आग मिट्टी पेड़ पानी और हवा
गरीबों की लूट ली गई ये दवा
झूट कैसे होता है सच देख ले
बिकता हुआ अखबार खोल

तेरे बाग़ का तो गुलाब टूटा
यहाँ आँखों का ख़्वाब टूटा
हो गई मुहब्बत भी बेमोल
मत बोल मत बोल मत बोल

रौशनी तमाम अंधेरी हो गई
पत्थरों की सूरत है नई नई
भाई भाई में फूट बढ़ रही है
ऐ सियासत ज़हर कम घोल
मत बोल.......

दहशत दर्द और खड़ी दीवार
के बेवफ़ा ही तो है वफ़ादार
ख़ूब फूले फलेगा आगे बढ़ेगा
लुटेरों के आगे पीछे और डोल
मत बोल मत बोल मत बोल

    नदीम हसन चमन

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

# मत बोल #गीत

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दर्द सीने में तेरा मुझको सताता बहुत है ख़ुद तड़पता है मुझको तड़पाता बहुत है कह के हवाओं से चरागों ने खुदकुशी की है अंधेरा सियासत का अब डराता बहुत है टूट कर कभी जिसको बहुत चाहा था मैंने नज़र से बेवफ़ा हुआ दूर जाता बहुत है इश्क़ का यही अक्सर अंजाम हुआ साक़ी ज़िंदा बहुत कम रखता है मार जाता बहुत है तमाम रात मैं उसके ख़्वाबगाह में रहा लेकिन आँख जो खुली हर ख़्वाब सताता बहुत है .... ..... ..... ... .... .... ©मोहम्मद मुमताज़ हसन

 दर्द सीने में तेरा मुझको सताता बहुत है
ख़ुद तड़पता है मुझको तड़पाता बहुत है

कह के हवाओं से चरागों ने खुदकुशी की है
अंधेरा सियासत का अब डराता बहुत है

टूट कर कभी जिसको बहुत चाहा था मैंने
नज़र से बेवफ़ा हुआ दूर जाता बहुत है

इश्क़ का यही अक्सर अंजाम हुआ साक़ी
ज़िंदा बहुत कम रखता है मार जाता बहुत है

तमाम रात मैं उसके ख़्वाबगाह में रहा लेकिन
आँख जो खुली हर ख़्वाब सताता बहुत है
....     ..... ..... ...    ....  ....

©मोहम्मद मुमताज़ हसन

#दर्द #दिल #शायरी

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तुम भी खूबसूरत कलाम लिख दो न मेरे दिल पे तुम्हारा नाम लिख दो न ( मोहम्मद मुमताज़ हसन )

#शायरी #कलाम #नाम #Heart  तुम भी खूबसूरत कलाम लिख दो न
मेरे  दिल  पे तुम्हारा नाम लिख दो न

( मोहम्मद मुमताज़ हसन )
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