यूँ लिखूं तो क्या लिखूं, मनुष्य की वैमनुष्यता लिखू | हिंदी Shayari

"यूँ लिखूं तो क्या लिखूं, मनुष्य की वैमनुष्यता लिखूं, या सभ्यों की सभ्यता लिखूं, छुपकर लिखूं या वयां लिखूं, स्त्री लिखूं या हया लिखूं, गीला लिखूं या सूखा लिखूं, ये पेट भरा लिखूं के भूखा लिखूं, यूं लिखूं तो - आखिर क्या लिखूं ।। सूरज लिखूं या चांद लिखूं , धरती लिखूं या आसमान लिखूं , भूत लिखूं या भविष्य लिखूं , या सब छोड़ वर्तमान लिखूं , घर लिखूं या शमशान लिखूं , या जलती हुयी मसान लिखूं , यूं लिखूं तो, आखिर क्या लिखूं ।। देश लिखूं या जहान लिखूं , आदर लिखूं के अपमान लिखूं , सोच लिखूं या जुबान लिखूं , कर्ज लिखूं के एहसान लिखूं , यूं लिखूं तो आखिर क्या लिखूं , गीता लिखूं या कुरान लिखूं , आखिर किसको महान लिखूं , रस लिखूं या जाम लिखूं , शुरुआत लिखूं या अन्जाम लिखूं , अकड़ लिखूं या दया लिखूं , जहर लिखूं के दवा लिखूं , या बदलते दौर की हवा लिखूं , यूं लिखूं तो आखिर क्या लिखूं ।।"

 यूँ लिखूं तो क्या लिखूं,
मनुष्य की वैमनुष्यता लिखूं,
या सभ्यों की सभ्यता लिखूं,
छुपकर लिखूं या
वयां लिखूं,
स्त्री लिखूं या हया लिखूं,
गीला लिखूं या
सूखा लिखूं,
ये पेट भरा लिखूं के भूखा लिखूं,
यूं लिखूं तो -
आखिर क्या लिखूं ।।

                                                                  

                                                सूरज लिखूं या चांद लिखूं ,
                                                         धरती लिखूं या आसमान लिखूं ,
                                                     भूत लिखूं या भविष्य लिखूं ,
                                                       या सब छोड़ वर्तमान लिखूं ,
                                                         घर लिखूं या शमशान लिखूं ,
                                                          या जलती हुयी मसान लिखूं ,
                                    यूं लिखूं तो,
                                                  आखिर क्या लिखूं ।।

                                                देश लिखूं या जहान लिखूं ,
                                           आदर लिखूं के अपमान लिखूं ,
                                              सोच लिखूं या जुबान लिखूं ,
                                             कर्ज लिखूं के एहसान लिखूं ,
                                          यूं लिखूं तो आखिर क्या लिखूं ,
                                             गीता लिखूं या कुरान लिखूं ,
                                            आखिर किसको महान लिखूं ,
                                                रस लिखूं या जाम लिखूं ,
                                       शुरुआत लिखूं या अन्जाम लिखूं ,
                                           अकड़ लिखूं या दया लिखूं ,
                                            जहर लिखूं के दवा लिखूं ,
                                         या बदलते दौर की हवा लिखूं ,
                                                 यूं लिखूं तो
                               आखिर क्या लिखूं ।।

यूँ लिखूं तो क्या लिखूं, मनुष्य की वैमनुष्यता लिखूं, या सभ्यों की सभ्यता लिखूं, छुपकर लिखूं या वयां लिखूं, स्त्री लिखूं या हया लिखूं, गीला लिखूं या सूखा लिखूं, ये पेट भरा लिखूं के भूखा लिखूं, यूं लिखूं तो - आखिर क्या लिखूं ।। सूरज लिखूं या चांद लिखूं , धरती लिखूं या आसमान लिखूं , भूत लिखूं या भविष्य लिखूं , या सब छोड़ वर्तमान लिखूं , घर लिखूं या शमशान लिखूं , या जलती हुयी मसान लिखूं , यूं लिखूं तो, आखिर क्या लिखूं ।। देश लिखूं या जहान लिखूं , आदर लिखूं के अपमान लिखूं , सोच लिखूं या जुबान लिखूं , कर्ज लिखूं के एहसान लिखूं , यूं लिखूं तो आखिर क्या लिखूं , गीता लिखूं या कुरान लिखूं , आखिर किसको महान लिखूं , रस लिखूं या जाम लिखूं , शुरुआत लिखूं या अन्जाम लिखूं , अकड़ लिखूं या दया लिखूं , जहर लिखूं के दवा लिखूं , या बदलते दौर की हवा लिखूं , यूं लिखूं तो आखिर क्या लिखूं ।।

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