निकल कर मेरी आंखों से मेरा ख्वाब जाना चाहता है ।
मेरे करीब आकर वो अब , मुझसे दूर जाना चाहता है ।
चाहतों का असर दिखने लगा , कि दूरियां बढ़ने लगी ,
वक्त अब मुझे अकेला , करना चाहता है ।
विछड़ कर क्या बचेगा पास मेरे यह बताने से पहले ,
कोई बेचैन - ऐ - शब से मुझे जोड़ना चाहता है ।
ऐ खुदा ! अब तू ही तरकीब कर मुझ पर ,
ऐ नादान दिल पहले सा फिर से होना चाहता है ।
©Abhishek Shukla
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