सुर्य आग बरसाता हैं, क्रोधित बैठा अब्ज़, अन्त ग् | हिंदी कविता

"सुर्य आग बरसाता हैं, क्रोधित बैठा अब्ज़, अन्त ग्लानि करते मानव, धरा रहीं ना सब्ज़.. बासी पेट बच्चे सोते, करते क्रंदन पुकार, कष्ट से व्याकुल होता हृदय, कोन सुने झंकार.. पृथ्वी बचाने आएँ, यहाँ नहीं कोई अवतार, खुद की दुर्गति देख हँसे, ज्ञानी व समझदार.. शिथिल पड़ जाती काया, कभी कंपन करता देह, भय हैं कहीं खो ना जायें, जिनसे हमें हैं स्नेह.. भूमी बंज़र हो गई, काल बन गया धूप, हरियाली नष्ट कर गया, राक्षस सा स्वरूप.. ©Bhavesh Thakur Rudra"

 सुर्य आग  बरसाता  हैं, क्रोधित  बैठा अब्ज़,
अन्त ग्लानि करते मानव, धरा रहीं ना सब्ज़..

बासी  पेट  बच्चे  सोते,  करते  क्रंदन  पुकार, 
कष्ट से व्याकुल होता हृदय, कोन सुने झंकार..

पृथ्वी  बचाने  आएँ, यहाँ  नहीं  कोई अवतार,
खुद  की दुर्गति  देख  हँसे, ज्ञानी व समझदार..

शिथिल पड़ जाती काया, कभी कंपन करता देह,
भय  हैं  कहीं खो  ना  जायें, जिनसे  हमें  हैं स्नेह..

भूमी  बंज़र  हो  गई,  काल  बन  गया  धूप,
हरियाली नष्ट  कर  गया, राक्षस सा स्वरूप..

©Bhavesh Thakur Rudra

सुर्य आग बरसाता हैं, क्रोधित बैठा अब्ज़, अन्त ग्लानि करते मानव, धरा रहीं ना सब्ज़.. बासी पेट बच्चे सोते, करते क्रंदन पुकार, कष्ट से व्याकुल होता हृदय, कोन सुने झंकार.. पृथ्वी बचाने आएँ, यहाँ नहीं कोई अवतार, खुद की दुर्गति देख हँसे, ज्ञानी व समझदार.. शिथिल पड़ जाती काया, कभी कंपन करता देह, भय हैं कहीं खो ना जायें, जिनसे हमें हैं स्नेह.. भूमी बंज़र हो गई, काल बन गया धूप, हरियाली नष्ट कर गया, राक्षस सा स्वरूप.. ©Bhavesh Thakur Rudra

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#endoftheworld

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