"Autumn वो मां को याद करके रो रहे थे।
नए लड़के सड़क पे सो रहे थे।।
वो अपने गांव के सब चांद तारे ।
श–हर की भीड़ में वो खो रहे थे।।
थे पक्के खेत फिर कंटीला दफ्तर।
जहाँ पर वो उ म्मीदें बो रहे थे।।
बहन के ख्वाब जोड़े जा रहे हैं ।
दवाई बाप की वो ढो रहे थे ।।
वो बस मजदूर बन के रह गए हैं।
वो कॉलेजों में जो अफसर रहे थे ।।
कोई निर्भय मरा था दिल लगा कर।
सभी अपना कलेजा टो रहे थे।।
निर्भय चौहान
१२२२ १२२२ १२२
©निर्भय चौहान"