पूर्णिमा की पूर्णता का एक व्रत आज की सावित्री हर | हिंदी कविता

"पूर्णिमा की पूर्णता का एक व्रत आज की सावित्री हर दिन रखती है अपने कर्म और धर्म के चक्कर जिम्मेदारी के वटवृक्ष के चारो और लगाती है.. हर दिन व्रत-उपवास रखती है अपनी ख्वाहिशो से परहेज बताती है... हर परेशानियो से अपने साथी के पहले वो स्वयं लड़ती है.. अपने घर का वटवृक्ष बन वो अपनी मुस्कुराहट से सब कुछ ढकती है.. ©Yogita Harne"

 पूर्णिमा की  पूर्णता का एक व्रत  आज की सावित्री हर दिन रखती है
अपने कर्म और धर्म के चक्कर जिम्मेदारी के वटवृक्ष के चारो और लगाती है..
हर दिन व्रत-उपवास रखती है अपनी ख्वाहिशो से परहेज बताती है...
 हर परेशानियो से अपने साथी के पहले वो स्वयं लड़ती है..
अपने घर का वटवृक्ष बन वो अपनी मुस्कुराहट से सब कुछ ढकती है..

©Yogita Harne

पूर्णिमा की पूर्णता का एक व्रत आज की सावित्री हर दिन रखती है अपने कर्म और धर्म के चक्कर जिम्मेदारी के वटवृक्ष के चारो और लगाती है.. हर दिन व्रत-उपवास रखती है अपनी ख्वाहिशो से परहेज बताती है... हर परेशानियो से अपने साथी के पहले वो स्वयं लड़ती है.. अपने घर का वटवृक्ष बन वो अपनी मुस्कुराहट से सब कुछ ढकती है.. ©Yogita Harne

आज की सावित्री

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