कैसे निकलता है दिन कैसे खिलती है चांदनी बहुत दिनों | हिंदी कविता

"कैसे निकलता है दिन कैसे खिलती है चांदनी बहुत दिनों से देखा नहीं हवा के झोंके किस तरह से पल्लू से टकरा कर निकल जाते है बहुत दिनों से देखा नहीं कालिमा के पहर में सुनसान हुई सड़के कैसे शोर गुल से भर जाती है बहुत दिनों से देखा नहीं चिडियो का कलरव आसमान में झुरमुट विचरण बहुत दिनों से देखा नही बेरोनक जिंदगी की कहानी खुद मैं समेट कर शून्य आंखो मैं उम्मीद का दिया जलाकर बस वक्त की गुहार लगा रही हूं अब देखना चाहती हु वो सब जो बहुत दिनो से देखा नहीं नीलम ©neelam Arora"

 कैसे निकलता है दिन
कैसे खिलती है चांदनी
बहुत दिनों से देखा नहीं
हवा के झोंके
किस तरह से पल्लू से टकरा कर निकल जाते है 
बहुत दिनों से देखा नहीं
कालिमा के  पहर में 
सुनसान हुई सड़के
 कैसे शोर गुल से भर जाती है
बहुत दिनों से देखा नहीं
चिडियो का कलरव 
आसमान में झुरमुट  विचरण
बहुत दिनों से देखा नही
बेरोनक जिंदगी की कहानी
खुद मैं समेट कर 
शून्य आंखो मैं 
उम्मीद का दिया जलाकर
बस वक्त की गुहार लगा रही हूं
अब देखना चाहती हु वो सब
जो बहुत दिनो से देखा नहीं
नीलम

©neelam Arora

कैसे निकलता है दिन कैसे खिलती है चांदनी बहुत दिनों से देखा नहीं हवा के झोंके किस तरह से पल्लू से टकरा कर निकल जाते है बहुत दिनों से देखा नहीं कालिमा के पहर में सुनसान हुई सड़के कैसे शोर गुल से भर जाती है बहुत दिनों से देखा नहीं चिडियो का कलरव आसमान में झुरमुट विचरण बहुत दिनों से देखा नही बेरोनक जिंदगी की कहानी खुद मैं समेट कर शून्य आंखो मैं उम्मीद का दिया जलाकर बस वक्त की गुहार लगा रही हूं अब देखना चाहती हु वो सब जो बहुत दिनो से देखा नहीं नीलम ©neelam Arora

# बहुत दिनों से देखा नहीं

#roseday

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