रोज खुद में मरते हैं, रोज अपनों के लिए मरते हैं। अ | हिंदी कविता

"रोज खुद में मरते हैं, रोज अपनों के लिए मरते हैं। अब थोड़ा सुकून से रह लेने दे,  अब तो यारों कम से कम अकेले में रो लेने दें। कभी अपने मुसीबत में अकेला छोड़ गये, कभी कुछ लोग बीच राह में दिल तोड़ गये। मगर हम फिर भी अपने में खुश रह लेते हैं, लड़के हैं, चलो हम अकेले में रो लेते हैं। ------आनन्द ©आनन्द कुमार"

 रोज खुद में मरते हैं,
रोज अपनों के लिए मरते हैं।
अब थोड़ा सुकून से रह लेने दे, 
अब तो यारों कम से कम अकेले में रो लेने दें।

कभी अपने मुसीबत में अकेला छोड़ गये,
कभी कुछ लोग बीच राह में दिल तोड़ गये।
मगर हम फिर भी अपने में खुश रह लेते हैं,
लड़के हैं, चलो हम अकेले में रो लेते हैं।
                                      ------आनन्द

©आनन्द कुमार

रोज खुद में मरते हैं, रोज अपनों के लिए मरते हैं। अब थोड़ा सुकून से रह लेने दे,  अब तो यारों कम से कम अकेले में रो लेने दें। कभी अपने मुसीबत में अकेला छोड़ गये, कभी कुछ लोग बीच राह में दिल तोड़ गये। मगर हम फिर भी अपने में खुश रह लेते हैं, लड़के हैं, चलो हम अकेले में रो लेते हैं। ------आनन्द ©आनन्द कुमार

#आनन्द_गाजियाबादी
#Anand_Ghaziabadi
#लडके

People who shared love close

More like this

Trending Topic