तेरी मिथ्या भी अब मुझको मोहित कर रही हैं, नाराजगी

"तेरी मिथ्या भी अब मुझको मोहित कर रही हैं, नाराजगी भी तेरी मोहिनी बना रही हैं ।। मासूम से बदन में नफरत की ये निगाहें हर बार कोसती हैं ये प्रीति की हवाएँ।। पिछले प्रणय के खातिर अनुनय कर रहा हूँ क्यूँ पालती है मन में दूसरों का आशियाना। तेरी ये बेचैनियाँ क्यूँ गम्भीर हो रही हैं। निश्छल से मन में मेंरी साया उतार ले।। क्या कर दिया ये जादू अब कौन जानता है प्यार का मारा तो दर-दर भटक रहा है ।। @@ विद्या चरण शुक्ला $###"

 तेरी मिथ्या भी अब मुझको मोहित कर रही हैं,
नाराजगी भी तेरी मोहिनी बना रही हैं ।।
मासूम से बदन में नफरत की ये निगाहें 
हर बार कोसती हैं ये प्रीति की हवाएँ।।
पिछले प्रणय के खातिर अनुनय कर रहा हूँ 
क्यूँ पालती है मन में दूसरों का आशियाना।
तेरी ये  बेचैनियाँ क्यूँ  गम्भीर हो रही हैं।    निश्छल से मन में मेंरी  साया उतार ले।।
क्या कर दिया ये जादू अब कौन जानता है 
प्यार का मारा तो दर-दर भटक रहा है ।।
@@ विद्या चरण शुक्ला $###

तेरी मिथ्या भी अब मुझको मोहित कर रही हैं, नाराजगी भी तेरी मोहिनी बना रही हैं ।। मासूम से बदन में नफरत की ये निगाहें हर बार कोसती हैं ये प्रीति की हवाएँ।। पिछले प्रणय के खातिर अनुनय कर रहा हूँ क्यूँ पालती है मन में दूसरों का आशियाना। तेरी ये बेचैनियाँ क्यूँ गम्भीर हो रही हैं। निश्छल से मन में मेंरी साया उतार ले।। क्या कर दिया ये जादू अब कौन जानता है प्यार का मारा तो दर-दर भटक रहा है ।। @@ विद्या चरण शुक्ला $###

#peace

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