उसे देख रहा, एक नीर गिरा होठों पर पर बरबस आ ही गया | हिंदी शायरी

"उसे देख रहा, एक नीर गिरा होठों पर पर बरबस आ ही गया एक राज दबा, वह चला गया फिर सुना-सुना आंगन तन-मन दिन धुधला और रात तमस की फिर डगर चले, पग दहर उसी जहाँ देखे नयन उसे और वहीं इक नीर गिरा... फिर बैठे सोचूँ राज वही मिलने की थी कल बात कहीं कुछ बेचैनी दिल भारी था रातों पर भी पहरेदारी था वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था जैसे दिन के गले से निकल रहा था फिर दिन ने उसे निगल ही लिया और एक नीर गिरा... फिर छोड़ सभी सब भाग रहें कुछ कुम्हलायें पुष्प भी जाग रहे मन की जिज्ञासा बढ़ती गई वह राज छिपा कर कहाँ गई मैं ढूंढा मुझको मिल ही गया कागज का टुकड़ा जिस पर राज लिखा लेकिन फिर एक नीर गिरा.. ©Narayan Datt Tiwari"

 उसे देख रहा, एक नीर गिरा
होठों पर पर बरबस आ ही गया
एक राज दबा, वह चला गया
फिर सुना-सुना आंगन तन-मन
दिन धुधला और रात तमस की 
फिर डगर चले, पग दहर उसी 
जहाँ देखे नयन उसे और वहीं 
इक नीर गिरा... 
फिर बैठे सोचूँ राज वही 
मिलने की थी कल बात कहीं 
कुछ बेचैनी दिल भारी था 
रातों पर भी पहरेदारी था 
वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था 
जैसे दिन के गले से निकल रहा था 
फिर दिन ने उसे निगल ही लिया और 
एक नीर गिरा...
फिर छोड़ सभी सब भाग रहें 
कुछ कुम्हलायें पुष्प भी जाग रहे 
मन की जिज्ञासा बढ़ती गई
वह राज छिपा कर कहाँ गई
मैं ढूंढा मुझको मिल ही गया
कागज का टुकड़ा 
जिस पर राज लिखा लेकिन
 फिर एक नीर गिरा..

©Narayan Datt Tiwari

उसे देख रहा, एक नीर गिरा होठों पर पर बरबस आ ही गया एक राज दबा, वह चला गया फिर सुना-सुना आंगन तन-मन दिन धुधला और रात तमस की फिर डगर चले, पग दहर उसी जहाँ देखे नयन उसे और वहीं इक नीर गिरा... फिर बैठे सोचूँ राज वही मिलने की थी कल बात कहीं कुछ बेचैनी दिल भारी था रातों पर भी पहरेदारी था वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था जैसे दिन के गले से निकल रहा था फिर दिन ने उसे निगल ही लिया और एक नीर गिरा... फिर छोड़ सभी सब भाग रहें कुछ कुम्हलायें पुष्प भी जाग रहे मन की जिज्ञासा बढ़ती गई वह राज छिपा कर कहाँ गई मैं ढूंढा मुझको मिल ही गया कागज का टुकड़ा जिस पर राज लिखा लेकिन फिर एक नीर गिरा.. ©Narayan Datt Tiwari

एक राज

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