कि गिरती है जात, गिरती है तुम्हारी औकात,
मनुष्य रूप में तू करता है घिनौना आघात।
मेरी जंगल तो तुम हड़प लिए, हड़प लिए संसार,
और जला जला कर जंगल तूने कर लिए संहार।।
कि मनुष्य की माता कहा, हाथी राजा का श्रेणी दिया,
सकल तुम किसे दिखालाओगे, कुल का जो नाश किया।
भूल गई थी तू इंसान है, इंसान रूपी तू हैवान है,
और इंसान का दर्द जो इंसान ना समझे, ऐसा तू सैतान है।।
कि निकली थी भूखा पेट लिए, पेट में नन्ही जान लिए,
ज्ञात नहीं था तुम पाप करोगे, मेरी पेट में ही विस्फोट करोगे।
अटकी थी जो प्राण मेरी, चिंता थी गर्भ में जान है मेरी,
और हारी थी मै खुद से, उजड़ चुकी थी जो संतान मेरी।।
कि जघन्य अपराध का तूने जो पाखंड किया,
इंसान को इंसान कहलाने का, दर्जा तूने समाप्त किया।
मत कहना तुझपे कहर बसरी, गजकर्ण का तूने अपमान किया,
शुभ घड़ी में पूजा करते हो जिसे, वो विघ्नविनाशक का जान लिया।।
©✍️प्रशांत कपसिमे
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