रक्षक (दोहे)
रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर।
तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।
रक्षक हो जब सामने, होता है विश्वास।
रक्षा कर पालन करे, यही बनाती खास।।
रक्षक भूले कर्म जो, भक्षक का हो राज।
संकट में फिर जिंदगी, कैसे पहने ताज।।
देव-दूत कहते उसे, है रक्षक का रूप।
भक्षक को ऐसे लगे, जैसे तपती धूप।।
रक्षक की ताकत बड़ी, ईश्वर देते साथ।
जहाँ पड़े कमजोर है, सर पर रखते हाथ।।
भक्षक भी फिर टूटता, रक्षक देता चोट।
भागा-भागा वह फिरे, कहीं न मिलती ओट।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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रक्षक (दोहे)
रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर।
तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।
रक्षक हो जब सामने, होता है विश्वास।