जिंदगी मैं सपने क्यों पिरो लेते है ये छोटे छोटे आज | हिंदी कविता

"जिंदगी मैं सपने क्यों पिरो लेते है ये छोटे छोटे आज कल के बच्चे क्यों अपने दिमाग को झगझोर देते है इतनी सी उम्र में भी लक्ष्य ठान लेते है बनते बनते कुछ खास अपनी सारी उमर गवा देते है क्यों ये प्रेम हासिल करने का कुछ जिंदगी ले जाता है क्यों आज का बच्चा बच्चा घरवालों से कम , फोन पर ऑनलाइन ज्यादा नज़र आता है क्यों जिंदगी इतनी तेज़ हो चली समय और दौलत के जंग मैं क्यों बच्चों की जिंदगी भी चली गई . . . ©Hitesh Ahuja"

 जिंदगी मैं सपने क्यों पिरो लेते है
ये छोटे छोटे आज कल के बच्चे
क्यों अपने दिमाग को झगझोर देते है

इतनी सी उम्र में भी 
लक्ष्य ठान लेते है
बनते बनते कुछ खास
अपनी सारी उमर गवा देते है

क्यों ये प्रेम हासिल करने का कुछ
जिंदगी ले जाता है
क्यों आज का बच्चा बच्चा
घरवालों से कम , फोन पर 
ऑनलाइन ज्यादा नज़र आता है

क्यों जिंदगी इतनी तेज़ हो चली
समय और दौलत के जंग मैं
क्यों बच्चों की जिंदगी भी
चली गई
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©Hitesh Ahuja

जिंदगी मैं सपने क्यों पिरो लेते है ये छोटे छोटे आज कल के बच्चे क्यों अपने दिमाग को झगझोर देते है इतनी सी उम्र में भी लक्ष्य ठान लेते है बनते बनते कुछ खास अपनी सारी उमर गवा देते है क्यों ये प्रेम हासिल करने का कुछ जिंदगी ले जाता है क्यों आज का बच्चा बच्चा घरवालों से कम , फोन पर ऑनलाइन ज्यादा नज़र आता है क्यों जिंदगी इतनी तेज़ हो चली समय और दौलत के जंग मैं क्यों बच्चों की जिंदगी भी चली गई . . . ©Hitesh Ahuja

#Cdildhood #बचपन

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