सुपुर्द-ए-ख़ाक करके आ गया हूँ,
अना को राख करके आ गया हूँ,
हुआ ग़ुरबत में दिल का हाल ऐसा,
जिग़र को चाक करके आ गया हूँ,
जहालत ने किया है ज़िस्म छलनी,
नसीहत ताक करके आ गया हूँ,
चमन के फूल से दामन बचाकर,
बुराई थाक करके आ गया हूँ,
धुआँ से घुट न जाए दम मुसाफ़िर,
चिलम सा नाक करके आ गया हूँ,
घटक दल की कई मज़बूरियाँ थीं,
शज़र को शाख करके आ गया हूँ,
भला 'गुंजन' करे क्या बे-खुदी में,
भरे को हाफ़ करके आ गया हूँ,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
समस्तीपुर बिहार
©Shashi Bhushan Mishra
#आ गया हूँ#