सुपुर्द-ए-ख़ाक करके आ गया हूँ, अना को राख करके | हिंदी शायरी

"सुपुर्द-ए-ख़ाक करके आ गया हूँ, अना को राख करके आ गया हूँ, हुआ ग़ुरबत में दिल का हाल ऐसा, जिग़र को चाक करके आ गया हूँ, जहालत ने किया है ज़िस्म छलनी, नसीहत ताक करके आ गया हूँ, चमन के फूल से दामन बचाकर, बुराई थाक करके आ गया हूँ, धुआँ से घुट न जाए दम मुसाफ़िर, चिलम सा नाक करके आ गया हूँ, घटक दल की कई मज़बूरियाँ थीं, शज़र को शाख करके आ गया हूँ, भला 'गुंजन' करे क्या बे-खुदी में, भरे को हाफ़ करके आ गया हूँ, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra"

 सुपुर्द-ए-ख़ाक  करके आ गया हूँ, 
अना को  राख  करके आ गया हूँ,

हुआ ग़ुरबत में दिल का हाल ऐसा, 
जिग़र को चाक करके आ गया हूँ,

जहालत ने किया है ज़िस्म छलनी, 
नसीहत  ताक  करके  आ गया हूँ,

चमन के फूल  से  दामन बचाकर, 
बुराई   थाक  करके  आ  गया हूँ,

धुआँ से घुट न जाए दम मुसाफ़िर, 
चिलम सा नाक करके आ गया हूँ,

घटक दल की कई मज़बूरियाँ थीं,
शज़र को शाख करके आ गया हूँ,

भला 'गुंजन' करे क्या बे-खुदी में, 
भरे को  हाफ़  करके  आ गया हूँ,
     --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

सुपुर्द-ए-ख़ाक करके आ गया हूँ, अना को राख करके आ गया हूँ, हुआ ग़ुरबत में दिल का हाल ऐसा, जिग़र को चाक करके आ गया हूँ, जहालत ने किया है ज़िस्म छलनी, नसीहत ताक करके आ गया हूँ, चमन के फूल से दामन बचाकर, बुराई थाक करके आ गया हूँ, धुआँ से घुट न जाए दम मुसाफ़िर, चिलम सा नाक करके आ गया हूँ, घटक दल की कई मज़बूरियाँ थीं, शज़र को शाख करके आ गया हूँ, भला 'गुंजन' करे क्या बे-खुदी में, भरे को हाफ़ करके आ गया हूँ, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#आ गया हूँ#

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