जिसे सजाया था कभी, अब मायूस है यहाँ गुलिस्तां, आती

"जिसे सजाया था कभी, अब मायूस है यहाँ गुलिस्तां, आती नहीं क्यों अब तितलियाँ ओ बागबाँ, सोचा ना था होगा कभी ये सूरत-ए-हाल यहाँ, ज़मीन ओ आसमां और ज़र्रा ज़र्रा है फ़ुग़ाँ, कौन सा ये दौर है, कैसा है ये ज़माना, मिलता हू "बाज़" खुद से ऐसे, तन्हाई सज़ा है कैसा ओ दिल-ए-बयाबाँ -मोहम्मद शाह बाज़"

 जिसे सजाया था कभी, अब मायूस है यहाँ गुलिस्तां, आती नहीं क्यों अब तितलियाँ ओ बागबाँ, 

सोचा ना था होगा कभी ये सूरत-ए-हाल यहाँ, 
ज़मीन ओ आसमां और ज़र्रा ज़र्रा है फ़ुग़ाँ, 

कौन सा ये दौर है, कैसा है ये ज़माना, 
मिलता हू "बाज़" खुद से ऐसे, तन्हाई सज़ा है कैसा ओ दिल-ए-बयाबाँ 


-मोहम्मद शाह बाज़

जिसे सजाया था कभी, अब मायूस है यहाँ गुलिस्तां, आती नहीं क्यों अब तितलियाँ ओ बागबाँ, सोचा ना था होगा कभी ये सूरत-ए-हाल यहाँ, ज़मीन ओ आसमां और ज़र्रा ज़र्रा है फ़ुग़ाँ, कौन सा ये दौर है, कैसा है ये ज़माना, मिलता हू "बाज़" खुद से ऐसे, तन्हाई सज़ा है कैसा ओ दिल-ए-बयाबाँ -मोहम्मद शाह बाज़

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