उफ्फ्फ ये सादगी
बिखरी सी है मोती की लड़ी
क्या फिर से वह हँस पड़ी।
घिर आये काले काले बादल
लगा लिया क्या उसने काजल।
चाँद पर लाखों पहरें हैं
आनन पर गेसू ठहरे हैं।
उसका कहाँ कोई सानी
पहन ली फिर साड़ी धानी।
अल्हड़ सी मासूम मतवाली,
न श्रृंगार है ना होठ लाली।
लगा जमी पर आ गया बादल
उछाला जो उसने आँचल।
बजती रुन झुन किंकिणि
आ गई सुन्दर रमणी।
सविता सिंह मीरा
जमशेदरपुर
©savita singh Meera
# यह सादगी