रतजगा आंखें ये , कुछ ख्वाब संजोते आया है । कई महफ

"रतजगा आंखें ये , कुछ ख्वाब संजोते आया है । कई महफिलों की रंगत से ये , कुछ नज्म चुराते आया है । कभी बयां हुई न लबों से जो , प्रायः उन्हीं जख्मों को अपनाते आया है । ~दीपशिखा"

 रतजगा आंखें ये , 
कुछ ख्वाब संजोते आया है ।
कई महफिलों की रंगत से ये , 
कुछ नज्म चुराते आया है ।
कभी बयां हुई न लबों से जो  , 
प्रायः उन्हीं जख्मों को अपनाते आया है ।
 ~दीपशिखा

रतजगा आंखें ये , कुछ ख्वाब संजोते आया है । कई महफिलों की रंगत से ये , कुछ नज्म चुराते आया है । कभी बयां हुई न लबों से जो , प्रायः उन्हीं जख्मों को अपनाते आया है । ~दीपशिखा

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