कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, उन पत्थरों प | हिंदी कविता

"कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, उन पत्थरों पर चलना कांटों में रास्ता बनाना, खुद को अकेला महसूस करना, खुद से लड़ना, और फिर मान जाना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, क्या खोया क्य़ा पाया, उसका हिसाब लगाना, कुछ लोग छूट गए, कुछ नए अपने मिले, कुछ अनजान रास्तो पर बढ़ना, डरे सहमे से कदम रखना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, यकीनन एक अलग पहचान के लिए, कितने अनजान रास्तो पर चला हूं, मैं खुद की पहचान के लिए वक्त के साथ चला हूं, पर क्या मिट गया क्या पाया इन अनजान रास्तों ने मुझे कितना अपना बनाया, कभी कभी खुद की याद मुझे आने लगती है || ©parijat"

 कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
उन पत्थरों पर चलना  
कांटों में रास्ता बनाना, 
खुद को अकेला महसूस करना, 
खुद से लड़ना, 
और फिर मान जाना, 
कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
क्या खोया क्य़ा पाया, 
उसका हिसाब लगाना, 
कुछ लोग छूट गए, 
कुछ नए अपने मिले, 
कुछ अनजान रास्तो पर बढ़ना,
डरे सहमे से कदम रखना, 
कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
यकीनन एक अलग पहचान के लिए, 
कितने अनजान रास्तो पर चला हूं, 
मैं खुद की पहचान के लिए वक्त के साथ चला हूं, 
पर क्या मिट गया क्या पाया  
इन अनजान रास्तों ने मुझे कितना अपना बनाया, 
कभी कभी खुद की याद मुझे आने लगती है ||

©parijat

कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, उन पत्थरों पर चलना कांटों में रास्ता बनाना, खुद को अकेला महसूस करना, खुद से लड़ना, और फिर मान जाना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, क्या खोया क्य़ा पाया, उसका हिसाब लगाना, कुछ लोग छूट गए, कुछ नए अपने मिले, कुछ अनजान रास्तो पर बढ़ना, डरे सहमे से कदम रखना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, यकीनन एक अलग पहचान के लिए, कितने अनजान रास्तो पर चला हूं, मैं खुद की पहचान के लिए वक्त के साथ चला हूं, पर क्या मिट गया क्या पाया इन अनजान रास्तों ने मुझे कितना अपना बनाया, कभी कभी खुद की याद मुझे आने लगती है || ©parijat

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