parijat

parijat Lives in Dehradun, Uttarakhand, India

अपनी शामों में हिस्सा अब किसी को ना दिया.....

  • Latest
  • Popular
  • Video

White जाने क्या है उसमें, जो मुझे उस ओर खींच रहा है, मंजिल कहाँ है पता नहीं, फिर भी क्यूँ मैं उस तरफ बढ़ रहा हूं, ना मुझे कुछ मालूम है, ना उसे कुछ खबर, पर अर्से बाद मुझमें कुछ, नया पनप रहा है, मेरी धूल खाती डायरी, और खत्म होती स्याही का पेन , जाने क्या कुछ लिखने को, फिर से मचल रहा है, मुझे नहीं मालूम कि क्या है ये, क्या सही है क्या गलत है, और ना ही मुझे अब कुछ समझना है, पर उससे बात करना, जानें क्यूं इक जरुरत सा लगता है, मैं खुश हूं,कब तक रहूंगा, मैंने उस ख़ुदा पर छोड़ दिया है ©parijat

#कविता #manjil #ankahe #khwab #Road  White जाने क्या है उसमें, 
जो मुझे उस ओर खींच रहा है, 
 मंजिल कहाँ है पता नहीं, 
फिर भी क्यूँ मैं उस तरफ बढ़ रहा हूं, 
ना मुझे कुछ मालूम है, 
ना उसे कुछ खबर, 
पर अर्से बाद मुझमें कुछ, 
नया पनप रहा है, 
मेरी धूल खाती डायरी,
और खत्म होती स्याही का पेन ,
जाने क्या कुछ लिखने को, 
फिर से मचल रहा है,
मुझे नहीं मालूम कि क्या है ये, 
क्या सही है क्या गलत है, 
और ना ही मुझे अब कुछ समझना है, 
पर उससे बात करना, 
जानें क्यूं इक जरुरत सा लगता है, 
मैं खुश हूं,कब तक रहूंगा, 
मैंने उस ख़ुदा पर छोड़ दिया है

©parijat

वो आजाद पंछी है, रोक नहीं सकते तुम, किसी पिंजरे में कमरे में या फिर मकाँ में, अलग ख्याल हैं उसके, अलग तरीका है जीने का, अलग एहसास है, अलग अंदाज है बातों का, कभी यूँ कि सबको हँसा जाए, किसी के पास बैठे तो उसके ग़म भुला जाए, उसको बुरा लगे तो कुछ पल के लिए सबसे दूर हो जाए, कल क्या होगा , उसे कोई फिकर नहीं है, वो आज को आज मे जीती है, वो एक आजाद पंछी है, रोक नहीं सकते तुम किसी पिंजरे मे कमरे में या फिर किसी मकाँ में || अपने को खूब जानती है वो, किससे कितना मिलना है, पहचानती है वो , बातें पसंद हैं सिर्फ़ सुनना उसे, ख्वाब पसंद हैं सिर्फ देखना उसे, सच झूठ,ख्वाब हक़ीक़त का mixture है, वो एक आजाद पंछी है, रोक नहीं सकते तुम, किसी पिंजरे में कमरे में, या फिर किसी मकाँ में || ©parijat

#कविता #traintrack #parinda #azaad #Ek  वो आजाद पंछी है,
रोक नहीं सकते तुम, 
किसी पिंजरे में कमरे में 
या फिर मकाँ में, 
अलग ख्याल हैं उसके, 
अलग तरीका है जीने का, 
अलग एहसास है, 
अलग अंदाज है बातों का, 
कभी यूँ कि सबको हँसा जाए, 
किसी के पास बैठे
 तो उसके ग़म भुला जाए,
    उसको बुरा लगे तो  
कुछ पल के लिए सबसे दूर हो जाए, 
    कल क्या होगा ,
उसे कोई फिकर नहीं है, 
वो आज को आज मे जीती है, 
वो एक आजाद पंछी है, 
रोक नहीं सकते तुम 
किसी पिंजरे मे कमरे में 
या फिर किसी मकाँ में ||
अपने को खूब जानती है वो, 
किससे कितना मिलना है, 
    पहचानती है वो ,
बातें पसंद हैं सिर्फ़ सुनना उसे,
ख्वाब पसंद हैं सिर्फ देखना उसे, 
सच झूठ,ख्वाब हक़ीक़त का mixture है, 
 वो एक आजाद पंछी है, 
  रोक नहीं सकते तुम, 
किसी पिंजरे में  कमरे में, 
या फिर किसी मकाँ में ||

©parijat

कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, उन पत्थरों पर चलना कांटों में रास्ता बनाना, खुद को अकेला महसूस करना, खुद से लड़ना, और फिर मान जाना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, क्या खोया क्य़ा पाया, उसका हिसाब लगाना, कुछ लोग छूट गए, कुछ नए अपने मिले, कुछ अनजान रास्तो पर बढ़ना, डरे सहमे से कदम रखना, कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, यकीनन एक अलग पहचान के लिए, कितने अनजान रास्तो पर चला हूं, मैं खुद की पहचान के लिए वक्त के साथ चला हूं, पर क्या मिट गया क्या पाया इन अनजान रास्तों ने मुझे कितना अपना बनाया, कभी कभी खुद की याद मुझे आने लगती है || ©parijat

#कविता #atthetop  कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
उन पत्थरों पर चलना  
कांटों में रास्ता बनाना, 
खुद को अकेला महसूस करना, 
खुद से लड़ना, 
और फिर मान जाना, 
कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
क्या खोया क्य़ा पाया, 
उसका हिसाब लगाना, 
कुछ लोग छूट गए, 
कुछ नए अपने मिले, 
कुछ अनजान रास्तो पर बढ़ना,
डरे सहमे से कदम रखना, 
कभी कभी मुझे खुद की याद आने लगती है, 
यकीनन एक अलग पहचान के लिए, 
कितने अनजान रास्तो पर चला हूं, 
मैं खुद की पहचान के लिए वक्त के साथ चला हूं, 
पर क्या मिट गया क्या पाया  
इन अनजान रास्तों ने मुझे कितना अपना बनाया, 
कभी कभी खुद की याद मुझे आने लगती है ||

©parijat

#atthetop

11 Love

हासिल जमा जोड़ घटा, तुमने सब कर लिया है ना, जिंदगी का फैसला तो तुमने ले लिया है ना, वक़्त फ़िसल रहा है मुट्टी से रेत की तरह, फिर कहां कोई मिलता है जैसे मिला था पहली मर्तबा || ©parijat

#विचार #PhisaltaSamay #hasil #ghta #Jod  हासिल जमा जोड़ घटा, तुमने सब कर लिया है ना, 
जिंदगी का फैसला तो तुमने ले लिया है ना, 


वक़्त फ़िसल रहा है मुट्टी से रेत की तरह, 
फिर कहां कोई मिलता है जैसे मिला था पहली मर्तबा ||

©parijat

एक अदद सा ख्वाब हूं, एक छोटी सी मुलाकात हूं, ना शब्द हूं ना लफ़्ज़ हूं, सिर्फ एक एहसास हूं, किसी डाल पर बैठा परिंदा हूं, या हवा संग उड़ता कोई पत्ता, किसी नदी में बहती बूंद हूं, या झील में ठहरा कोई पत्थर, एक अदद सा ख्वाब हूं, या सिर्फ एक अहसास हूं, मैं खुद मे उलझा हूं, या वक्त में कहीं ठहरा हूं, मैं सूरज की रोशनी का हिस्सा हूं, या मिट्टी में बिखरी धूल हूं, मैं ख्वाहिशों का पुलिंदा हूं, या हकीकत की परछाई हूं, मैं कोई शब्द हूं, या कोई किताब हूं, कौन हूं मैं? एक अदद सा ख्वाब हूं, या सिर्फ एहसास हूं || ©parijat

#कविता #WoRaat #Mai #Hun #kon  एक अदद सा ख्वाब हूं, 
एक छोटी सी मुलाकात हूं, 
ना शब्द हूं ना लफ़्ज़ हूं, 
सिर्फ एक एहसास हूं, 
किसी डाल पर बैठा परिंदा हूं, 
या हवा संग उड़ता कोई पत्ता, 
किसी नदी में बहती बूंद हूं, 
या झील में ठहरा कोई पत्थर, 
एक अदद सा ख्वाब हूं,
या सिर्फ एक अहसास हूं, 
मैं खुद मे उलझा हूं, 
या वक्त में कहीं ठहरा हूं, 
मैं सूरज की रोशनी का हिस्सा हूं, 
या मिट्टी में बिखरी धूल हूं, 
मैं ख्वाहिशों का पुलिंदा हूं, 
या हकीकत की परछाई हूं, 
मैं कोई शब्द हूं, 
या कोई किताब हूं, 
कौन हूं मैं?
एक अदद सा ख्वाब हूं, 
या सिर्फ एहसास हूं ||

©parijat

"कहां आसां होता है " रोज खुद से , एक नयी जंग लड़ना कहाँ आसान होता है, बिखर कर टुकड़ों में , खुद को समेटना कहाँ आसां होता है || लोग आयेंगे तोड़ेंगे रौंदकर चले जाएंगे, फिर से खुद को बनाना कहां आसां होता है, कोमल मिट्टी से बने थे तुम , लोगों के पत्थरों से मिलना कहां आसां होता है, बहुत फेकेंगे पत्थर भी तुम्हारी ओर, सबको ढोकर चलना कहां आसां होता है, वो रोशन करेंगे आसमा तुम्हारा, अंधेरी रात से लड़ना कहां आसां होता है, हर्फ़ दर हर्फ़ घुलते रहे तुम खुद को पीछे छोड़ना कहाँ आसां होता है, मुमकिन होता कि दो पल ठहर पाते तुम, इस भीड़ के धक्कों से बचना कहां आसां होता है, माना कि थक गए हो इस रेस में तुम, यूं हथियार डालना भी कहां आसां होता है, एक उम्र गुजार दी जाती है, इस लीग से हटना भी कहां आसां होता है, मयस्सर लोग चले जाते हैं चिता पर लकड़ी रखकर, उस तपती आग में जलना कहां आसां होता है|| ©parijat

#कविता #कहां #होता #WinterSunset #आसा  "कहां आसां होता है "


रोज खुद से ,
एक नयी जंग लड़ना कहाँ आसान होता है, 
बिखर कर टुकड़ों में ,
खुद को समेटना कहाँ आसां होता है ||
लोग आयेंगे तोड़ेंगे रौंदकर चले जाएंगे,
 फिर से खुद को बनाना कहां आसां होता है, 
कोमल मिट्टी से बने थे तुम ,
लोगों के पत्थरों से मिलना कहां आसां होता है, 
बहुत फेकेंगे पत्थर भी तुम्हारी ओर, 
 सबको ढोकर चलना कहां आसां होता है, 
वो रोशन करेंगे आसमा तुम्हारा, 
अंधेरी रात से लड़ना कहां आसां होता है, 
हर्फ़ दर हर्फ़ घुलते रहे तुम 
 खुद को पीछे छोड़ना कहाँ आसां होता है, 
मुमकिन होता कि दो पल ठहर पाते तुम,
 इस भीड़ के धक्कों से बचना कहां आसां होता है, 
माना कि थक गए हो इस रेस में तुम, 
यूं हथियार डालना भी कहां आसां होता है, 
एक उम्र गुजार दी जाती है,
 इस लीग से हटना भी कहां आसां होता है, 
मयस्सर लोग चले जाते हैं चिता पर लकड़ी रखकर, 
उस तपती आग में जलना कहां आसां होता है||

©parijat
Trending Topic