नारी का सम्मान याद रहा, वही समाज पुरुष को मान दिला

"नारी का सम्मान याद रहा, वही समाज पुरुष को मान दिला न सका, देते रहते थे जो समानता की दुहाई, उनमें से भी कोई अब समझा न सका, वो पुरूष पीटता रहा चैराहे पर, उसकी मदद को कोई आगे पाँव बढ़ा न सका, किस ख़ता की उसने सजा है पाई, ये बात उसे कोई बतला न सका। वो ग़रीब था शायद इसीलिए, किसी बड़े अधिकारी से गुहार लगा न सका, मेहनत की करके खाने वाला, दलाली की हरकतें करके दिखा न सका, मात-पिता के संस्कारों से ऊपर उठकर, वो अभिमान जता न सका, महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना, तभी वो हाथ चला न सका। उसमें इंसानियत अभी बाकी थी, इसीलिए हैवानियत का भूत उसपे आ न सका, देख उस दृश्य को कोई भी, रणभूमि और सड़कों में फर्क बता न सका, पत्रकारों के सम्मुख डटा रहा, फ़िर भी सच का गुणगान गा न सका, इंसाफ की गुहार लगाए बैठा है, पर अभी तक न्याय वो पा न सका। आशा और उम्मीद है बाक़ी उसमें, झूठ कभी सच झूठला न सका, मिलेगा उसको सब्र का फल मीठा, कहावत का मान कभी कोई घटा न सका, न्यायालय से भी है कोई ऊपर, यह अहसास उसके मन भीतर कोई ला न सका, फ़ैसला सच के संग होना है, क्योंकि सच को झूठ कभी हरा न सका। ©AK Ajay Kanojiya"

 नारी का सम्मान याद रहा, वही समाज पुरुष को मान दिला न सका,
देते रहते थे जो समानता की दुहाई, उनमें से भी कोई अब समझा न सका,
वो पुरूष पीटता रहा चैराहे पर, उसकी मदद को कोई आगे पाँव बढ़ा न सका,
किस ख़ता की उसने सजा है पाई, ये बात उसे कोई बतला न सका।

वो ग़रीब था शायद इसीलिए, किसी बड़े अधिकारी से गुहार लगा न सका,
मेहनत की करके खाने वाला, दलाली की हरकतें करके दिखा न सका,
मात-पिता के संस्कारों से ऊपर उठकर, वो अभिमान जता न सका,
महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना, तभी वो हाथ चला न सका।

उसमें इंसानियत अभी बाकी थी, इसीलिए हैवानियत का भूत उसपे आ न सका,
देख उस दृश्य को कोई भी, रणभूमि और सड़कों में फर्क बता न सका,
पत्रकारों के सम्मुख डटा रहा, फ़िर भी सच का गुणगान गा न सका,
इंसाफ की गुहार लगाए बैठा है, पर अभी तक न्याय वो पा न सका।

आशा और उम्मीद है बाक़ी उसमें, झूठ कभी सच झूठला न सका,
मिलेगा उसको सब्र का फल मीठा, कहावत का मान कभी कोई घटा न सका,
न्यायालय से भी है कोई ऊपर, यह अहसास उसके मन भीतर कोई ला न सका,
फ़ैसला सच के संग होना है, क्योंकि सच को झूठ कभी हरा न सका।

©AK Ajay Kanojiya

नारी का सम्मान याद रहा, वही समाज पुरुष को मान दिला न सका, देते रहते थे जो समानता की दुहाई, उनमें से भी कोई अब समझा न सका, वो पुरूष पीटता रहा चैराहे पर, उसकी मदद को कोई आगे पाँव बढ़ा न सका, किस ख़ता की उसने सजा है पाई, ये बात उसे कोई बतला न सका। वो ग़रीब था शायद इसीलिए, किसी बड़े अधिकारी से गुहार लगा न सका, मेहनत की करके खाने वाला, दलाली की हरकतें करके दिखा न सका, मात-पिता के संस्कारों से ऊपर उठकर, वो अभिमान जता न सका, महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना, तभी वो हाथ चला न सका। उसमें इंसानियत अभी बाकी थी, इसीलिए हैवानियत का भूत उसपे आ न सका, देख उस दृश्य को कोई भी, रणभूमि और सड़कों में फर्क बता न सका, पत्रकारों के सम्मुख डटा रहा, फ़िर भी सच का गुणगान गा न सका, इंसाफ की गुहार लगाए बैठा है, पर अभी तक न्याय वो पा न सका। आशा और उम्मीद है बाक़ी उसमें, झूठ कभी सच झूठला न सका, मिलेगा उसको सब्र का फल मीठा, कहावत का मान कभी कोई घटा न सका, न्यायालय से भी है कोई ऊपर, यह अहसास उसके मन भीतर कोई ला न सका, फ़ैसला सच के संग होना है, क्योंकि सच को झूठ कभी हरा न सका। ©AK Ajay Kanojiya

"नारी का सम्मान याद रहा, वही समाज पुरुष को मान दिला न सका,
देते रहते थे जो समानता की दुहाई, उनमें से भी कोई अब समझा न सका,
वो पुरूष पीटता रहा चैराहे पर, उसकी मदद को कोई आगे पाँव बढ़ा न सका,
किस ख़ता की उसने सजा है पाई, ये बात उसे कोई बतला न सका।"
#ZeroDiscrimination #cabdriver #humanitydied #JusticeforHumanity
@AK Ajay Kanojiya
Divyansh Attri its_me_pankaj_jha LRK SAINI G0V!ND DHAkAD follow your heart# megha sen

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