White ' बुढ़ापा '
उम्र का ये आखिरी पड़ाव है
जिन्दजी की शाम है ,
न जाने कितने रंगों को समेटे हुवे
अपने जहन में अनगिनत यादों को लिए,
बहुत खूबसूरत ये जाम है ,
अनगिनत रिश्तों को बांधे ये डोर है ,
सारे रिश्तों में प्यार सराबोर है ,
इस जिन्दजी कि शाम में ,
अकेलापन क्यों घनघोर है ,
ये ढलती उम्र , ये धीमी चॉल
उस पर चाँदी के बाल
हड्डियां हुई है कमजोर ,
चल ऐ मन तू कहि और ..
वो दोस्त याद आते है ,
ऐ जिन्दजी चल नए दोस्त मनाते है ,
मिलकर सब फिर से ठहाका लगते है
बैठेगे जब मिलकर ,
बाटेंगे ये ज्ञान एक दूजे को
जो इस उम्र में अनन्त और कुछ और हे ...
©Parul (kiran)Yadav
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