कोई मुझसे जुदा अगर न होता, तो मै इस कदर बिखरा न हो | हिंदी कविता

"कोई मुझसे जुदा अगर न होता, तो मै इस कदर बिखरा न होता। छोड़ कर मुझको वो कभी न जाते, उसके पास अगर छोटा-सा दिल होता। भटके मुसाफिर सा मेरा दिल न होता, अगर मेरा पास भी कोई दिल का घर होता। इस तरह वो मुझे बेरुख़ी न दिखलाता, उसकी नज़रों मैं कुछ भी नजर नही आता। काम उसके कभी तो मै नजर आता, अगर मैं उनको बेकार बेजुबान नजर न आता। देखकर मुझको बदल दिया उसने रास्ता, उसे मुझे नजरअंदाज करने मे बड़ा मजा आता। उसको क्यो मेरा यह दर्द नहीं दिखा पाता, जुदाई की पीड़ा में यह दिल क्यों सहम जाता। ©Priyanka Thakur"

 कोई मुझसे जुदा अगर न होता,
तो मै इस कदर बिखरा न होता। 

छोड़ कर मुझको वो कभी न जाते,
उसके पास अगर छोटा-सा दिल होता। 

भटके मुसाफिर सा मेरा दिल न होता,
अगर मेरा पास भी कोई दिल का घर होता। 

इस तरह वो मुझे बेरुख़ी न दिखलाता, 
उसकी नज़रों मैं कुछ भी नजर नही आता। 

काम उसके कभी तो मै नजर आता,
अगर मैं उनको बेकार बेजुबान नजर न आता। 

देखकर मुझको बदल दिया उसने रास्ता, 
उसे मुझे नजरअंदाज करने मे बड़ा मजा आता। 

उसको क्यो मेरा यह दर्द नहीं दिखा पाता,
जुदाई की पीड़ा में यह दिल क्यों सहम जाता।

©Priyanka Thakur

कोई मुझसे जुदा अगर न होता, तो मै इस कदर बिखरा न होता। छोड़ कर मुझको वो कभी न जाते, उसके पास अगर छोटा-सा दिल होता। भटके मुसाफिर सा मेरा दिल न होता, अगर मेरा पास भी कोई दिल का घर होता। इस तरह वो मुझे बेरुख़ी न दिखलाता, उसकी नज़रों मैं कुछ भी नजर नही आता। काम उसके कभी तो मै नजर आता, अगर मैं उनको बेकार बेजुबान नजर न आता। देखकर मुझको बदल दिया उसने रास्ता, उसे मुझे नजरअंदाज करने मे बड़ा मजा आता। उसको क्यो मेरा यह दर्द नहीं दिखा पाता, जुदाई की पीड़ा में यह दिल क्यों सहम जाता। ©Priyanka Thakur

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