White #केदार की आवाज# कोई जानता है मैं कौन हूं? | हिंदी Poetry Video

"White #केदार की आवाज# कोई जानता है मैं कौन हूं? मैं पहाड़ों में बस देव हूं।। यूं ही ना जाने कब से वास है मेरा, निहारत रह गए सुंदरता को मेरी। दिया साथ मैंने सबका सुख दुख में , फिर क्यों छीन गया आज सुख मेरा। कोई जानता है मैं क्या हूं? मैं भगवान केदार हूं।। मैं पंच केदार ज्योतिर्लिंग में निवास हूं, कोई जानता है मैं कहां रहता हूं? मैं हसीन वादियों के बीच स्थित हूं, ढकी बर्फ की चोटियों के बीच निवास हूं।। क्यों छोड़ आए पहाड़ों का दामन, आंखें भरी जारी दुख से मेरी। कोई जानता है ऐसा कैसे हुआ? देख सके तो देख हैं मनुष्य, कहां आंख बंद तू बैठा हैं। लुप्त होते उत्तराखंड का जाल देख, भू _धू कर जलते बुग्याल देख। आंखो से बौछार, टूटने का दर्द,, हँसी मेरी कोई समझ ना सका। कोई जानता ऐसा क्यों हुआ? जवान हाथ शहर के जो हो गए, सुना दिल्ली जा रहे केदार भगवान। शायद अब ना हो उनको पसंद पहाड़।। अभी अभी जारी हुआ काम, तभी पता चलेगा दाम। कोई जानता ऐसा कब हुआ? आपस ईमेल से फंसे हैं हम, खूब इमेल बैठक में फंसे हैं हम। पास होकर भी दूर बनाया खुद को, खूब व्यस्त बना दिया खुद को। भूल गए 2013 को खुद हम, आंखें भर रही आज भी मेरी। मैं जवान नहीं फिर भी नया जमाना, मैं तो भूल गया कल का दिन नया जमाना। ©Shivani Thapliyal "

White #केदार की आवाज# कोई जानता है मैं कौन हूं? मैं पहाड़ों में बस देव हूं।। यूं ही ना जाने कब से वास है मेरा, निहारत रह गए सुंदरता को मेरी। दिया साथ मैंने सबका सुख दुख में , फिर क्यों छीन गया आज सुख मेरा। कोई जानता है मैं क्या हूं? मैं भगवान केदार हूं।। मैं पंच केदार ज्योतिर्लिंग में निवास हूं, कोई जानता है मैं कहां रहता हूं? मैं हसीन वादियों के बीच स्थित हूं, ढकी बर्फ की चोटियों के बीच निवास हूं।। क्यों छोड़ आए पहाड़ों का दामन, आंखें भरी जारी दुख से मेरी। कोई जानता है ऐसा कैसे हुआ? देख सके तो देख हैं मनुष्य, कहां आंख बंद तू बैठा हैं। लुप्त होते उत्तराखंड का जाल देख, भू _धू कर जलते बुग्याल देख। आंखो से बौछार, टूटने का दर्द,, हँसी मेरी कोई समझ ना सका। कोई जानता ऐसा क्यों हुआ? जवान हाथ शहर के जो हो गए, सुना दिल्ली जा रहे केदार भगवान। शायद अब ना हो उनको पसंद पहाड़।। अभी अभी जारी हुआ काम, तभी पता चलेगा दाम। कोई जानता ऐसा कब हुआ? आपस ईमेल से फंसे हैं हम, खूब इमेल बैठक में फंसे हैं हम। पास होकर भी दूर बनाया खुद को, खूब व्यस्त बना दिया खुद को। भूल गए 2013 को खुद हम, आंखें भर रही आज भी मेरी। मैं जवान नहीं फिर भी नया जमाना, मैं तो भूल गया कल का दिन नया जमाना। ©Shivani Thapliyal

केदार नाथ भगवान शिव

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