इंतजार नहीं मुमकिन किसको सब्र है यहां बचपन में ही | हिंदी कविता

"इंतजार नहीं मुमकिन किसको सब्र है यहां बचपन में ही शरारतें छूटी बचपने के छूटे निशान करने है काम कितने उलझन में हैं जान बन पाया नहीं कोई परफेक्ट बनना ही है मुकाम बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla"

 इंतजार नहीं मुमकिन किसको सब्र है यहां 
बचपन में ही शरारतें छूटी बचपने के छूटे निशान 
करने है काम कितने उलझन में हैं जान
बन पाया नहीं कोई परफेक्ट बनना ही है मुकाम
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla

इंतजार नहीं मुमकिन किसको सब्र है यहां बचपन में ही शरारतें छूटी बचपने के छूटे निशान करने है काम कितने उलझन में हैं जान बन पाया नहीं कोई परफेक्ट बनना ही है मुकाम बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla

उलझनचाँदनी @vineetapanchal @Rajesh koli KK क्षत्राणी @Andy Mann @SIDDHARTH.SHENDE.sid

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