इलाहाबादी परंपरा है दोपहर खाने के बाद 30 min ya 1

"इलाहाबादी परंपरा है दोपहर खाने के बाद 30 min ya 1 घंटे आराम और फिर वही किताब ....वही नोट्स ... खैर नीद में थे तो और मोबाइल बजने लगी" हमनवा मेरे तू है तो " ...रिसीव किया तो आवाज आई ,,, अर्जेंट है और 5 यूनिट ब्लड चाहिए ...जगह पूछे और उठे और चल दिए ... नही पता किसको चाहिए ....क्या हुआ है ... शाम तक सारा अरेंजमेंट हो गया ...और ब्लड बैंक में डोनेट कर रहे थे तो " women empowerment " pe webinar चल रहा था ,, तनु जैन मैम गेस्ट थी ... हमने बस इतना सुना की आप को empowerment का मतलब तब समझ आएगा जब आप कम उम्र में financial independent हो जाओ .... खैर इसके आगे हम कुछ सुन नही पाए थे ...जिनको ब्लड की जरूरत थी वो 22 साल की एक बच्ची थी ...जिसका ऑपरेशन होना था और डॉक्टर ने 50-50 चांस की बात कही थी .... उस बच्ची की मां पिछले 22 सालों से प्राइवेट नौकरी कर रही थी और सैलरी के नाम पे सिर्फ 7000 मिल रहे थे .. मिनिमम वेजेज एक्ट जैसा कुछ नाम सुना होगा आप ने ! हां कुछ कानून बस नाम के हैं । हॉस्पिटल में डॉक्टर महिला थी ,मां का दर्द शायद उससे बेहतर कौन समझता ? और दुनिया भर में लोग उस दिन womens empowerment पे ज्ञान दे रहे थे ।लेकिन वहां women empowerment का कांसेप्ट लागू नही होता था ...वो गांधी को ज्यादा मानती थी वहां गांधी के आगे सारे सिद्धांत घुटनो के बल रेंग रहे थे । पैसे ज्यादा ही लगने थे ...आप घर बेचे या खुद को नीलाम करे फर्क नही पड़ता .... जितनी कोशिश की जा सकती थी ...वो की गई ...देर रात वापस आ गए ....कुछ बेचैनी सी थी या इस बात का मलाल था की चाह कर भी होनी को टाल नहीं सकते थे ... चाह कर भी कुछ कर नही सके थे सुबह के 5 बजे सागर का फिर फोन आया ....भैया ,,बच्ची को बचाया नही जा सका ... तब से यही सोच रहा कि .... हम किस बात पर ज्ञान देते है .... अपने और आप के संवेदनहीन होने का ...? हम पढ़ लिख कर शायद मानवीय संवेदना भूल तो नहीं रहे! महिला जिस ऑफिस में 22 साल से काम कर रही थी वहा ऐसे लोग भी थे जिनकी सैलरी 1 लाख से ज्यादा थी लेकिन सैलरी ज्यादा थी दिल बहुत छोटा था ...जाहिर सी बात है वहा महिलाएं भी रही होंगी और है भी लेकिन कौन समझता है किसी का दर्द ! इंसान होकर भी हम इंसान नही बन पाए हैं ....मैने उस दिन एक औरत की लाचारी देखी ...उसकी आंखे शायद सबसे सवाल कर रही थी ...... मैं महिला हूं और डॉक्टर महिला है ....बच्ची भी ....लेकिन फिर भी .....पैसा सबसे बड़ा है .... मैं स्वीकारता हूं इस देश में सबसे बड़े गांधी है ....जो नोटों पर हैं ....उसके बाद इंसानियत ..और ...संवेदना .... सबसे आखिरी पायदान पर अपनी अंतिम सांस ले रहे है .... ©Sachin R. Pandey"

 इलाहाबादी परंपरा है दोपहर खाने के बाद 30 min ya 1 घंटे आराम और फिर वही किताब ....वही नोट्स ...
खैर नीद में थे तो और मोबाइल बजने लगी" हमनवा मेरे तू है तो " ...रिसीव किया तो आवाज आई ,,, अर्जेंट है और 5 यूनिट ब्लड चाहिए ...जगह पूछे और उठे और चल दिए ...
नही पता किसको चाहिए ....क्या हुआ है ...
शाम तक सारा अरेंजमेंट हो गया ...और ब्लड बैंक में डोनेट कर रहे थे तो " women empowerment " pe webinar चल रहा था ,, तनु जैन मैम गेस्ट थी ...
हमने बस इतना सुना की आप को empowerment का मतलब तब समझ आएगा जब आप कम उम्र में financial independent हो जाओ ....
खैर इसके आगे हम कुछ सुन नही पाए थे ...जिनको ब्लड की जरूरत थी वो 22 साल की एक बच्ची थी ...जिसका ऑपरेशन होना था और डॉक्टर ने 50-50 चांस की बात कही थी ....
उस बच्ची की मां पिछले 22 सालों से प्राइवेट नौकरी कर रही थी और सैलरी के नाम पे सिर्फ 7000 मिल रहे थे .. मिनिमम वेजेज एक्ट जैसा कुछ नाम सुना होगा आप ने ! हां कुछ कानून बस नाम के हैं ।
हॉस्पिटल में डॉक्टर महिला थी ,मां का दर्द शायद उससे बेहतर कौन समझता ? और दुनिया भर में लोग उस दिन womens empowerment पे ज्ञान दे रहे थे ।लेकिन वहां  women empowerment का कांसेप्ट लागू नही होता था ...वो गांधी को ज्यादा मानती थी
वहां गांधी के आगे सारे सिद्धांत घुटनो के बल रेंग रहे थे  ।
पैसे ज्यादा ही लगने थे ...आप घर बेचे या खुद को नीलाम करे फर्क नही पड़ता ....
जितनी कोशिश की जा सकती थी ...वो की गई ...देर रात वापस आ गए ....कुछ बेचैनी सी थी या इस बात का मलाल था की चाह कर भी होनी को टाल नहीं सकते थे ... चाह कर भी कुछ कर नही सके थे 
सुबह के 5 बजे सागर का फिर फोन आया ....भैया ,,बच्ची को बचाया नही जा सका ...
तब से यही सोच रहा कि .... हम किस बात पर ज्ञान देते है ....
अपने और आप के संवेदनहीन होने का ...? हम पढ़ लिख कर शायद मानवीय संवेदना भूल तो नहीं रहे! 
महिला जिस ऑफिस में 22 साल से काम कर रही थी वहा ऐसे लोग भी थे जिनकी सैलरी 1 लाख से ज्यादा थी लेकिन सैलरी ज्यादा थी दिल बहुत छोटा था ...जाहिर सी बात है वहा महिलाएं भी रही होंगी और है भी  लेकिन कौन समझता है किसी का दर्द !
इंसान होकर भी हम इंसान नही बन पाए हैं ....मैने उस दिन एक औरत की लाचारी देखी ...उसकी आंखे शायद सबसे सवाल कर रही थी ......
मैं महिला हूं और डॉक्टर महिला है ....बच्ची भी ....लेकिन फिर भी .....पैसा सबसे बड़ा है ....
मैं स्वीकारता हूं इस देश में सबसे बड़े गांधी है ....जो नोटों पर हैं ....उसके बाद इंसानियत ..और ...संवेदना .... सबसे आखिरी पायदान पर अपनी अंतिम सांस ले रहे है ....

©Sachin R. Pandey

इलाहाबादी परंपरा है दोपहर खाने के बाद 30 min ya 1 घंटे आराम और फिर वही किताब ....वही नोट्स ... खैर नीद में थे तो और मोबाइल बजने लगी" हमनवा मेरे तू है तो " ...रिसीव किया तो आवाज आई ,,, अर्जेंट है और 5 यूनिट ब्लड चाहिए ...जगह पूछे और उठे और चल दिए ... नही पता किसको चाहिए ....क्या हुआ है ... शाम तक सारा अरेंजमेंट हो गया ...और ब्लड बैंक में डोनेट कर रहे थे तो " women empowerment " pe webinar चल रहा था ,, तनु जैन मैम गेस्ट थी ... हमने बस इतना सुना की आप को empowerment का मतलब तब समझ आएगा जब आप कम उम्र में financial independent हो जाओ .... खैर इसके आगे हम कुछ सुन नही पाए थे ...जिनको ब्लड की जरूरत थी वो 22 साल की एक बच्ची थी ...जिसका ऑपरेशन होना था और डॉक्टर ने 50-50 चांस की बात कही थी .... उस बच्ची की मां पिछले 22 सालों से प्राइवेट नौकरी कर रही थी और सैलरी के नाम पे सिर्फ 7000 मिल रहे थे .. मिनिमम वेजेज एक्ट जैसा कुछ नाम सुना होगा आप ने ! हां कुछ कानून बस नाम के हैं । हॉस्पिटल में डॉक्टर महिला थी ,मां का दर्द शायद उससे बेहतर कौन समझता ? और दुनिया भर में लोग उस दिन womens empowerment पे ज्ञान दे रहे थे ।लेकिन वहां women empowerment का कांसेप्ट लागू नही होता था ...वो गांधी को ज्यादा मानती थी वहां गांधी के आगे सारे सिद्धांत घुटनो के बल रेंग रहे थे । पैसे ज्यादा ही लगने थे ...आप घर बेचे या खुद को नीलाम करे फर्क नही पड़ता .... जितनी कोशिश की जा सकती थी ...वो की गई ...देर रात वापस आ गए ....कुछ बेचैनी सी थी या इस बात का मलाल था की चाह कर भी होनी को टाल नहीं सकते थे ... चाह कर भी कुछ कर नही सके थे सुबह के 5 बजे सागर का फिर फोन आया ....भैया ,,बच्ची को बचाया नही जा सका ... तब से यही सोच रहा कि .... हम किस बात पर ज्ञान देते है .... अपने और आप के संवेदनहीन होने का ...? हम पढ़ लिख कर शायद मानवीय संवेदना भूल तो नहीं रहे! महिला जिस ऑफिस में 22 साल से काम कर रही थी वहा ऐसे लोग भी थे जिनकी सैलरी 1 लाख से ज्यादा थी लेकिन सैलरी ज्यादा थी दिल बहुत छोटा था ...जाहिर सी बात है वहा महिलाएं भी रही होंगी और है भी लेकिन कौन समझता है किसी का दर्द ! इंसान होकर भी हम इंसान नही बन पाए हैं ....मैने उस दिन एक औरत की लाचारी देखी ...उसकी आंखे शायद सबसे सवाल कर रही थी ...... मैं महिला हूं और डॉक्टर महिला है ....बच्ची भी ....लेकिन फिर भी .....पैसा सबसे बड़ा है .... मैं स्वीकारता हूं इस देश में सबसे बड़े गांधी है ....जो नोटों पर हैं ....उसके बाद इंसानियत ..और ...संवेदना .... सबसे आखिरी पायदान पर अपनी अंतिम सांस ले रहे है .... ©Sachin R. Pandey

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