बिना सब्र, लंबा इंतजार भी कितना कठिन है,
शिकायत में निकले शब्द, खंजर से कम नही,
बेसब्रियां अलग ही, मन को बेकाबु कर रही है,
सोचो इंतज़ार करता, ये मन भी तो गलत नही,
कितना व्याकुल हुआ होगा, वो शख्स प्रतिपल,
जब जाना कि,हैं नही खास वो उसके नजरो में ,
जिसको वह अपना सब कुछ समझा करता था,
खुद की नजरो में,वो खुद को ही गिरता पाया है।
: स्मृतकाव्य
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©smriti ki kalam se
#Sawera