"तेरी जाम में , ए ज़ालिम हम होश गवा बैठे हैं
कुछ इस कदर खुद्को फराहमोश बना बैठे हैं
कभी तारों से होती थी सिफारिशे मुलाक़ात की
और आज बेखौफ कही तुझ्मे ही चाँद सजा बैठे हैं ।"
तेरी जाम में , ए ज़ालिम हम होश गवा बैठे हैं
कुछ इस कदर खुद्को फराहमोश बना बैठे हैं
कभी तारों से होती थी सिफारिशे मुलाक़ात की
और आज बेखौफ कही तुझ्मे ही चाँद सजा बैठे हैं ।