तेरी जाम में , ए ज़ालिम हम होश गवा बैठे हैं
कुछ इस कदर खुद्को फराहमोश बना बैठे हैं
कभी तारों से होती थी सिफारिशे मुलाक़ात की
और आज बेखौफ कही तुझ्मे ही चाँद सजा बैठे हैं ।
हसीं के पीछे का हर शक्स हसीन नहीं होता
सतरंगी कपड़ो में हर शक्स फकीर नहीं होता
छिपे हैं सारे पर्दो की ओंट में
मगर हर पर्दा भी तो रंगीन नहीं होता
एक ही खेल के खिलाड़ी है सब
बस इतना है फरक की
मुखोटा हर किसीका बहतरीन नहीं होता ।
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