पर आखिर मे जब हम दोनों के बीच के इस रिश्ते को मेने | हिंदी Poetry

"पर आखिर मे जब हम दोनों के बीच के इस रिश्ते को मेने पक्की यारी के नाम से अपनाया, तो तुमने ईस रिश्ते को बहोत कम अहमियत से तराशा? तुम्हें याद दीलाए तो वो तुम ही थी, तुमने ही मुझे दोस्ती कि अहमियत समझाई थी, तो क्यों तुम ही उस अहमियत कि राह से अनजान हो गई, शायद तुम दोस्ती की अहमियत से अनजान नहीं, सीर्फ हमारी दोस्ती कि अहमियत तुमसे नजरअंदाज हैं। ©Urvisha Parmar"

 पर आखिर मे जब हम दोनों के बीच के इस रिश्ते को मेने पक्की यारी के नाम से अपनाया,
तो तुमने ईस रिश्ते को बहोत कम अहमियत से तराशा?
तुम्हें याद दीलाए तो वो तुम ही थी, तुमने ही मुझे दोस्ती कि अहमियत समझाई थी,
तो क्यों तुम ही उस अहमियत कि राह से अनजान हो गई,
शायद तुम दोस्ती की अहमियत से अनजान नहीं, 
सीर्फ हमारी दोस्ती कि अहमियत तुमसे नजरअंदाज हैं।

©Urvisha Parmar

पर आखिर मे जब हम दोनों के बीच के इस रिश्ते को मेने पक्की यारी के नाम से अपनाया, तो तुमने ईस रिश्ते को बहोत कम अहमियत से तराशा? तुम्हें याद दीलाए तो वो तुम ही थी, तुमने ही मुझे दोस्ती कि अहमियत समझाई थी, तो क्यों तुम ही उस अहमियत कि राह से अनजान हो गई, शायद तुम दोस्ती की अहमियत से अनजान नहीं, सीर्फ हमारी दोस्ती कि अहमियत तुमसे नजरअंदाज हैं। ©Urvisha Parmar

#अनचाही_दोस्तीकी_शुरुआत3

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