मोहलतें मिलती रहीं ग़र यूँ ही दरिंदगी को आँख के | हिंदी कविता

"मोहलतें मिलती रहीं ग़र यूँ ही दरिंदगी को आँख के पानी को फिर शर्म से डूब जाने दो -अजय नेमा"

 मोहलतें मिलती रहीं

ग़र यूँ ही दरिंदगी को

आँख के पानी को

फिर शर्म से डूब जाने दो

-अजय नेमा

मोहलतें मिलती रहीं ग़र यूँ ही दरिंदगी को आँख के पानी को फिर शर्म से डूब जाने दो -अजय नेमा

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