दस्तक़ देता रहता हूँ ।
मसलन और इत्तेफ़ाक़न आपके अहकाम लिखूं।
मुझे पढ़ने वाले कहते है।
इजाज़त लेकर आपकी , आपके ही फरमान लिखूं।
इस उम्मत की सलामती।
इससे ज़्यादा क्या में अपने अरमान लिखूं।
भटक गए जो राह से उनकी माफ कीजिये।
आपसे क्या छुपा है ,क्या में उनके इल्ज़ाम लिखूं।
लौट आओ मग़फ़िरत के लिए रमज़ान आया है।
वाकिफ़ होके भी ज़मीर को मारने वालों, किस इंतज़ार में हो ?
क्या में पूरी अज़ान लिखूं।
Shah Talib Ahmed
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