कभी - कभी जिंदगी '1857 की क्रांति' जैसी लगती है ज | हिंदी शायरी

"कभी - कभी जिंदगी '1857 की क्रांति' जैसी लगती है जिसमें हो बहुत कुछ रहा है मगर संगठित कुछ भी नहीं है ©sunday wali poem"

 कभी - कभी जिंदगी
'1857 की क्रांति' 
जैसी लगती है
जिसमें हो बहुत कुछ 
रहा है
मगर
संगठित कुछ भी नहीं है

©sunday wali poem

कभी - कभी जिंदगी '1857 की क्रांति' जैसी लगती है जिसमें हो बहुत कुछ रहा है मगर संगठित कुछ भी नहीं है ©sunday wali poem

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