मेरा अनुभव (दोहे)
मेरा अनुभव कह रहा, बनों नहीं अनजान।
जीवन यह संकट भरा, मत होना हैरान।।
मेरा अनुभव कह रहा, ऐसा दो पैगाम।
खुशियों की भरमार हो, मुख पर तेरा नाम।।
मेरा अनुभव कह रहा, क्यों करते तुम बैर।
संकट भी फिर घेरता, मने नहीं तब खैर।।
मेरा अनुभव कह रहा, है कैसा यह दौर।
मानवता को छोड़ते, करे नहीं अब गौर।।
मेरा अनुभव कह रहा, सच की छोड़ें डोर।
ऐसे ही गर यह चला, कैसे होगी भोर।।
मेरा अनुभव कह रहा, हो सबका सम्मान।
मन तेरा यह खुश रहे, दूजे का भी जान।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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मेरा अनुभव (दोहे)
मेरा अनुभव कह रहा, बनों नहीं अनजान।
जीवन यह संकट भरा, मत होना हैरान।।
मेरा अनुभव कह रहा, ऐसा दो पैगाम।