चौथी टंगड़ी, खुद में लंगड़ी,
मारे लंगड़ी लोकतंत्र को।
क्या कहना, क्या कहना,
क्या कहना,हो स्वच्छंद जो,
बस उद्दण्ड ही,इस स्वतंत्र को?
तीन टांगें सरकारी खाना -
खायें वहीं निजी खा खजाना,
जिसका खायें गुण भी गायें,
भूल न जायें पढ़े -पढ़ाये बारीक मंत्र को।
लंगड़ी लंगड़ी मारे जो तगड़ी,
पूरा ही ढांचा वो वो रगड़ी,
क्या शक ऐसा जो हो ढहे बुत,
कुछ अपनी दो हस्ती हां इस यंत्र को।
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#चौथा पांव