नज़रों के रास्तें उतर रहा है,
दिल में कोई आहिस्ता-आहिस्ता..
निशब्द रहती हूँ मैं,
समझ रहा हैं मेरी खामोशियों को
कोई आहिस्ता-आहिस्ता..
अब पलकों को मेरी नींदे
मयस्सर कहॉ,यादों में रात
भर जगाता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता..
कि बेगानों की भीड़ में तन्हा
सा ऐहसास नहीं होता,अजनबी
अपना सा लगने लगा है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता..
©Chanchal Chaturvedi
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