इन्ही आंगन में कभी चहकती थी चिड़ियां ।
इन्हीं गलियों में कभी बच्चे करते थे किलकारियां
पानी के लहरों में कभी चलती थी कागज की कश्तियां
कहीं गुम सी हो गई है अब वो सारी मस्तियां
जली हुई चूल्हे की मिट्टी की सोंधी खुशबू कहां नजर आती है
पीपल में बंधी झूले की रस्सी अपनी निशां तरासती है
लंबी चौड़ी पगडंडी अब संकरी सी नजर आती है
गांव की सरकारी स्कूल खंडहरों की दास्तां सुनाती है
गांव में गोरी की पायल अब शोर मचाती नहीं
घुंघरू की आवाज अब गलियों में कहीं से आती नहीं
©Deepika Yadav
इन्ही आंगन में कभी चहकती थी चिड़ियां