अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक रचना दीप्तियाँ सी | हिंदी कविता

"अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक रचना दीप्तियाँ सीप की ..! ============ आरती हो साँझ की तुम , भोर की तुम हो वंदना वेदना के नग चढ़ी तुम , उल्लास की संवेदना । संग्राम का इक नाम तुम , संघर्ष की पराकाष्ठा पी गरल धीरज रखा नित , कर उम्मीद की प्रतिष्ठा । तुम जगत आवेग नारी , हो सकल सृष्टि पे भारी जग नियंता की तुम्ही हो , श्रेष्ठतम इक चित्रकारी । ख़ामोशी में हो मधुरम , गीत या संगीत कोई या नभ से उतरी चपला , चंचला मनमीत कोई । माँगा नहीं अपने लिए , घट सुधा का पान तुमने योगिनी त्रिविध रूप में , चाहा न गुणगान तुमने । अनंत धार प्रेरणा की , अवलियाँ तुम नेह दीप की ज्यूँ मोतियों से झाँकती , दीप्तियाँ हो तुम सीप की । इंद्र के ज्यूँ चाप में हो , तुम रंग सातों हों भरे और अमा के तम सारे , जैसे तुम्ही से हो डरे । तुम सृजन हो प्राणियों का , हो सकल ये सृष्टि तुम ही विश्वास की गहरी नदी , देवी आदि दृष्टि तुम ही । तुम तृषा औ तृप्ति तुम ही , प्रश्न तुम्ही प्रतिभाषा हो ममता श्रद्धा आशा तुम , जीवन की परिभाषा हो । ✍️ महेश पंचाल 'माही' (०८.०३.२०२०)"

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक रचना

दीप्तियाँ सीप की ..!
============
आरती  हो  साँझ  की  तुम , भोर  की  तुम हो वंदना
वेदना  के   नग  चढ़ी  तुम , उल्लास   की    संवेदना ।

संग्राम  का   इक  नाम  तुम , संघर्ष   की   पराकाष्ठा
पी  गरल  धीरज  रखा नित , कर उम्मीद की प्रतिष्ठा ।

तुम  जगत  आवेग  नारी , हो  सकल सृष्टि  पे  भारी
जग  नियंता  की  तुम्ही  हो , श्रेष्ठतम इक  चित्रकारी ।

ख़ामोशी   में   हो   मधुरम , गीत   या    संगीत  कोई
या  नभ  से  उतरी   चपला ,  चंचला   मनमीत  कोई ।

माँगा  नहीं  अपने  लिए , घट  सुधा  का  पान  तुमने
योगिनी   त्रिविध  रूप  में , चाहा   न  गुणगान  तुमने ।

अनंत  धार  प्रेरणा  की , अवलियाँ  तुम नेह दीप की
ज्यूँ  मोतियों  से झाँकती , दीप्तियाँ  हो तुम  सीप की ।

इंद्र  के  ज्यूँ  चाप   में  हो ,  तुम   रंग  सातों  हों  भरे
और  अमा   के  तम   सारे , जैसे   तुम्ही  से  हो  डरे ।

तुम सृजन हो प्राणियों का , हो सकल ये सृष्टि तुम ही
विश्वास  की   गहरी  नदी , देवी  आदि  दृष्टि  तुम  ही ।

तुम  तृषा औ  तृप्ति तुम ही , प्रश्न तुम्ही प्रतिभाषा हो
ममता  श्रद्धा  आशा तुम , जीवन  की  परिभाषा  हो ।
  ✍️ महेश पंचाल 'माही' (०८.०३.२०२०)

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक रचना दीप्तियाँ सीप की ..! ============ आरती हो साँझ की तुम , भोर की तुम हो वंदना वेदना के नग चढ़ी तुम , उल्लास की संवेदना । संग्राम का इक नाम तुम , संघर्ष की पराकाष्ठा पी गरल धीरज रखा नित , कर उम्मीद की प्रतिष्ठा । तुम जगत आवेग नारी , हो सकल सृष्टि पे भारी जग नियंता की तुम्ही हो , श्रेष्ठतम इक चित्रकारी । ख़ामोशी में हो मधुरम , गीत या संगीत कोई या नभ से उतरी चपला , चंचला मनमीत कोई । माँगा नहीं अपने लिए , घट सुधा का पान तुमने योगिनी त्रिविध रूप में , चाहा न गुणगान तुमने । अनंत धार प्रेरणा की , अवलियाँ तुम नेह दीप की ज्यूँ मोतियों से झाँकती , दीप्तियाँ हो तुम सीप की । इंद्र के ज्यूँ चाप में हो , तुम रंग सातों हों भरे और अमा के तम सारे , जैसे तुम्ही से हो डरे । तुम सृजन हो प्राणियों का , हो सकल ये सृष्टि तुम ही विश्वास की गहरी नदी , देवी आदि दृष्टि तुम ही । तुम तृषा औ तृप्ति तुम ही , प्रश्न तुम्ही प्रतिभाषा हो ममता श्रद्धा आशा तुम , जीवन की परिभाषा हो । ✍️ महेश पंचाल 'माही' (०८.०३.२०२०)

#विश्व_महिला_दिवस

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