कल शाम हवा कुछ मंद मंद सी थी मगर मुझे अंदर तक झकझो | हिंदी कविता

"कल शाम हवा कुछ मंद मंद सी थी मगर मुझे अंदर तक झकझोर के चली गयी अनायास ही भीतर कुछ शोर होने लगा तेरी यादों की कड़ी आई और आकर गुज़रती चली गयी कोलाहल इतना मच गया भीतर तेरी बातों का के सन्नाटों को चीरती तेरी यादें चली गयी ऐ-हवा अतीत की बातें न याद दिलाया कर मुझे मैं मिट्टी हूँ,और तू बार बार मुझे नम करती चली गयी ©Richa Dhar"

 कल शाम हवा कुछ मंद मंद सी थी
मगर मुझे अंदर तक झकझोर के चली गयी
अनायास ही भीतर कुछ शोर होने लगा
तेरी यादों की कड़ी आई और आकर गुज़रती चली गयी
कोलाहल इतना मच गया भीतर तेरी बातों का
के सन्नाटों को चीरती तेरी यादें चली गयी
ऐ-हवा अतीत की बातें न याद दिलाया कर मुझे
मैं मिट्टी हूँ,और तू बार बार मुझे नम करती चली गयी

©Richa Dhar

कल शाम हवा कुछ मंद मंद सी थी मगर मुझे अंदर तक झकझोर के चली गयी अनायास ही भीतर कुछ शोर होने लगा तेरी यादों की कड़ी आई और आकर गुज़रती चली गयी कोलाहल इतना मच गया भीतर तेरी बातों का के सन्नाटों को चीरती तेरी यादें चली गयी ऐ-हवा अतीत की बातें न याद दिलाया कर मुझे मैं मिट्टी हूँ,और तू बार बार मुझे नम करती चली गयी ©Richa Dhar

#chaandsifarish मैं मिट्टी हूँ

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