कल शाम हवा कुछ मंद मंद सी थी
मगर मुझे अंदर तक झकझोर के चली गयी
अनायास ही भीतर कुछ शोर होने लगा
तेरी यादों की कड़ी आई और आकर गुज़रती चली गयी
कोलाहल इतना मच गया भीतर तेरी बातों का
के सन्नाटों को चीरती तेरी यादें चली गयी
ऐ-हवा अतीत की बातें न याद दिलाया कर मुझे
मैं मिट्टी हूँ,और तू बार बार मुझे नम करती चली गयी
©Richa Dhar
#chaandsifarish मैं मिट्टी हूँ