वक्त बेवक्त अंधेरों का जुल्म इतना बढ़ा है रौशनी क | हिंदी शायरी

"वक्त बेवक्त अंधेरों का जुल्म इतना बढ़ा है रौशनी को भी चिराग लेकर चलना पड़ा है बड़े दरख्तों के साए में भी कभी नन्हे पौधा पनपता है घनी छायादार परछाइयों में भी भला कोई दिखता है यह वरदान प्रकृति से केवल मां को ही मिला है आने वाला विराट कल भी गोदी में खेलता है बबली भाटी बैसला ् ©Babli BhatiBaisla"

 वक्त बेवक्त अंधेरों का जुल्म इतना बढ़ा है 
रौशनी को भी चिराग लेकर चलना पड़ा है 



 बड़े दरख्तों के साए में भी कभी नन्हे पौधा  पनपता है 
घनी छायादार परछाइयों में भी भला कोई  दिखता है 




यह वरदान  प्रकृति से केवल मां को ही मिला है 
आने वाला विराट कल भी गोदी में खेलता है 
बबली भाटी बैसला
्

©Babli BhatiBaisla

वक्त बेवक्त अंधेरों का जुल्म इतना बढ़ा है रौशनी को भी चिराग लेकर चलना पड़ा है बड़े दरख्तों के साए में भी कभी नन्हे पौधा पनपता है घनी छायादार परछाइयों में भी भला कोई दिखता है यह वरदान प्रकृति से केवल मां को ही मिला है आने वाला विराट कल भी गोदी में खेलता है बबली भाटी बैसला ् ©Babli BhatiBaisla

विराट @Priya महज़ @Ruchi Rathore @Sharma_N @Sweety mehta

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