bench मुफ़लिसी के दिन और मैं बेरोजगार हूं,
ए मेरी जिंदगी तेरी वजह से शर्मसार हूं।
जेहलती है जो दोनों तरफ से नफरत,
मैं तो घर में वो बटवारे की दीवार हूं।
ये तकदीर है की मेरा साथ नहीं देती,
वरना तो खुशियों का मैं भी हकदार हूं।
मेरे भी सपनों को उड़ान मिलनी थी,
मेरे बस में भी क्या मैं तो लाचार हूं।
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे रह गए,
अधूरी कहानी का धुंधला किरदार हूं।
©ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ (RAVI)
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