इसलिए उकता रहा हूं तन्हाई से मुझे डर लगने लगा है प | हिंदी शायरी

"इसलिए उकता रहा हूं तन्हाई से मुझे डर लगने लगा है परछाई से अब उस तरह शोक पूरे नही होते जो पूरे होते थे बाप की कमाई से ये कैसा जख्म अता किया उसने मुझे नाउम्मीद कर दिया दवाई से कभी कभी तो मुझे झूठ लगता है वो सच बोलता है इतनी सफाई से आज मैं कत्ल हो गया हूं आवेश अपने ही खंजर की बेवफाई से ©Aawesh Khan"

 इसलिए उकता रहा हूं तन्हाई से
मुझे डर लगने लगा है परछाई से

अब उस तरह शोक पूरे नही होते
जो पूरे होते थे बाप की कमाई से

ये कैसा जख्म अता किया उसने
मुझे नाउम्मीद कर दिया दवाई से

कभी कभी तो मुझे झूठ लगता है
वो सच बोलता है इतनी सफाई से

आज मैं कत्ल हो गया हूं आवेश
अपने ही खंजर की बेवफाई से

©Aawesh Khan

इसलिए उकता रहा हूं तन्हाई से मुझे डर लगने लगा है परछाई से अब उस तरह शोक पूरे नही होते जो पूरे होते थे बाप की कमाई से ये कैसा जख्म अता किया उसने मुझे नाउम्मीद कर दिया दवाई से कभी कभी तो मुझे झूठ लगता है वो सच बोलता है इतनी सफाई से आज मैं कत्ल हो गया हूं आवेश अपने ही खंजर की बेवफाई से ©Aawesh Khan

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