महकती सुबह
बेखोफ बढ़ते क़दम
लहराती घास
केसरिया समा
बेहिसाब फिज़ा की महोब्बत
ग़ुम होता अंधेरा
नीलम सा आसमां
बादलों की सड़क
चलते जाना
खो जाना
अंत मे अनन्त हो जाना
होने की वजह ढूंढना
खुद से मिलना
फिर ख़ुद ही का हो जाना
ये में हूं हा शायद में ही हूं
©poetraja
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